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अब अनेक बाजे को भाव कहत है :-

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

अब अनेक बाजे को भाव कहत है :-

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१. बीन :- श्री स्वामिनीजी के संयोग समें कुंज में

२. मुरली :- श्री स्वामिनीजी के वियोग समें

३. अमृत कुंडली :- श्रुतिरूपान के वियोग समें

४. जल तरंग :- श्रुतिरूपान के वियोग समें

५. मदनभेरि :- श्रुतिरूपा राजसी

६. धोंसा :- श्रुतिरूपान तामसी

७. दुंदुभी :- श्रुतिरूपा सात्वकी

८. निसांन :- कुमारिका सात्वकी

९. घंटा :- कुमारिका सात्वकी

१०. संख :- कुमारिका सात्वकी

११. घंटा :- कुमारिका सात्वकी

१२. मुखचंग :- कुमारिका सात्वकी

१३. श्रृंगभेरि :- कुमारिका राजस

१४. खंजरी :- कुमारिका राजस सात्वक

१५. राय गिरगिरी :- कुमारिका राजस तामस सात्वक

१६. ताल :- कुमारिका राजस तामस

१७. कठताल :- कुमारिका राजस

१८. मजीरा :- कुमारिका तामस सात्वक

१९. महूसरि :- कुमारिका राजस तामस जो कुमारिका में तामस तामस नाहीं हें

२०. थारी :- श्रुतिरूपासात्वक राजस

२१. झालरि :- श्रुतिरूपा सात्वक सात्वक

२२. ढोल :- श्रुतिरूपा सात्वक तामस

२३. डफ :- श्रुतिरूपा सात्वक

२४. डिमडिमी :- श्रुतिरूपा राजस सात्वक

२५. झांझि :- श्रुतिरूपा राजस

२६. राय गिरीगिरी :- श्रुतिरूपा तामस सात्वक

२७. पित्रक :- श्रुतिरूपा तामस राजस

२८. रबाब :- श्रुतिरूपा तामस राजस सात्वक

२९. जंत्र :- श्रुतिरूपा तामस राजस सात्वक

३०. मृदंग :- श्री ललिताजी रास में

३१. सहनाई :- श्री यमुनाजी मधुरेसुर

३२. श्रीमंडल :- विसखाजी सुर देत हें

३३. दुधारा :- स्यामलाजी सखी

३४. करताल :- श्री भामाजी

३५. सारंगी :- चंपकलता सखी

३६. तुरही :- काम सखी

३७. किंनरी :- सहचरि आदि।


या प्रकार अनेक बाजे लीला संबंधी हे। होरी में सर्व वस्तु भावात्मक हें, महारास रूप अलोकिक जो कोउ सखी नंदरायजी के बसंत को साज करि आवत हें। कोउ सखी वृषभानजी किरतिजी को जाचत है, तहाँ किरतिजी के पास जाइ ललिता विसाखा आदि अत्यन्त मधुर वचन सों कहत हें, जो हे श्री किरतिजी आज वसंत को दिन प्रथम खेल को हैं, अपने अपने घरते तुमारे पास विनती करन आई हे, तातें अपनी बेटी को हमारे संग भेज देहु तो हम सखीन में परस्पर होरी खेलें तब श्री किरतीजी हु प्रसन्न होइकें श्री स्वामिनीजी को अभ्यंग स्नान कराय नव नौतन बसन आभूषन पहराइ पाछे नाना प्रकार के भोजन सखीन संग कराई खेलन की साज गुलाल अबीर केसरि को रंग आदि पिचकारी आदि सबन सों दैके पाछें ललितादिक अष्टसखीन सों कही, जो देखियो मेरी बेटी परम सुकुमार अत्यंत भोरी है, खेल में कहूँ अकेली मत छोडियों। तब सब ने कह्यो जो हे श्री किरति जी यह तुम्हारी बेटी है, सो हमको प्रानप्रिय हें, तातें तुम रंचक हू बेटी की चिंता मति करो, हम अपने प्रान की नांई आछी भांतिसों राखेंगी।


या भाँति अष्टसखीयाँ श्री किरतिजी को भलीभाँति समाधान करिके पाछें श्री स्वामिनीजी को ले चली, सो बसन्त को साज सिद्धि करिकें श्री नंदरायजी के घरकों समाज सहित चली हें। एक कंचन को कलस जामे जल कुंज रूप तापर खजूरि की डार सो हस्त रूप। तामें बोर सो आभूषण रूप, तापर सरस्यों के फूल मुखारविंद रसमें फूल आदि तथा भारी भक्तरूप ओर ऊपर लाल वस्त्र वेष्टित सारी रूप और ऊपर गुलाबी अबीर छिरकें हें, ऊपर पीरो वस्त्र अपने अंचल सों कुच रूप ढापे हे, जो केवल प्रभु अंगीकार करिवे योग्य हें, यह बसन्त की सामग्री प्रभु को दिखाई अपने हृदय के अभिप्राय जनायो।


या प्रकार गोपीजन श्री स्वामिनीजी कों आगें पधराय श्री नंदरायजी के घर को चले हें....

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