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अष्टाक्षर मंत्रनी विशेषता

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

अष्टाक्षर मंत्रनी विशेषता ए छे के तेनी शरुआतमां "प्रणव" एटले ॐकार नथी. बीजा जेटला पण मंत्रो के बीज मंत्रो छे तेनी शरुआत ॐकार थी थाय छे. परंतु वेदनी एवी मर्यादा छे के मंत्रमां प्रणब (ॐकार )आवतो होय ते मंत्रनुं उच्चारण कोई पण अशुद्ध अवस्था मां न थइ शके. दा. त. शौचादि गया होइऐ त्यारे स्नान कर्या सिवाय न थाय अथवा सुतक आदिमां मंत्रनुं उच्चारण थइ शके नहिं. स्नानादि करी शुद्ध थया पछी ज मंत्र नुं उच्चारण थाय. एटले श्रीआचार्य चरणे जीव उपर असीम कृपा विचारेली छे केमके कलियुगमां जो जीव क्षण मात्र पण भगवद नामथी विमुख रहे तो आसुरावश आववानो संभव छे.

माटे जीव क्षण मात्र पण भगवद नामथी विमुख न थाय, निरंतर, सतत, अहर्निश गमे ते अवस्थामां पण भगवद नाम लइ शके ए हेतुथी श्रीआचार्य चरणे कृपा विचारी ॐकार वगर अष्टाक्षर मंत्र जीवने आप्यो छे. माटे आपणे रटण चाल्या ज करे, जेथी व्यर्थ विचारो अने वार्तालापथी दूर रहेवाय अने मुखारता दोषमांथी बची शकाय. साथे प्रभुनी नाम रुपी सेवा पण थाय. केमके प्रभुना नाममां पच प्रभुना स्वरूप जेटलुं ज महात्म्य छे.

"रुप नाम विभेदेन जगत क्रीडति यो यत:।"

प्रभु आ जगतमां पोतानां रुप अने पोतानां नाम द्वारा एम बे प्रकारे क्रीडा करे छे।


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