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अष्टसखा - अष्टछाप

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

अष्टसखा - अष्टछाप


श्री गुसाईंजी श्रीविट्ठलनाथजी ने श्रीनाथजी की आठों भक्तियों में उनकी लीला-भावना के अनुसार समय और ऋतु के रागों द्वारा कीर्तन करने की व्यवस्था की थी। अपने चार और अपने पिता श्री के चार भक्त गायक शिष्यों की एक मंडली संगठित की थी। मंडली के आठों महानुभाव श्रीनाथ जी के परम भक्त होने के साथ अपने समय में पुष्टि-संप्रदाय के सर्वश्रेष्ट संगीतज्ञ, गायक और कवि भी थे। उनके निवार्चन से श्री गोस्वामी विट्ठलनाथजी ने उन पर मानों अपने आशीर्वाद की मौखिक 'छाप' लगाई थी, जिससे वे 'अष्टछाप' के नाम से प्रसिद्ध हुए। पुष्टि संप्रदाय की भावना के अनुसार वे श्रीनाथजी के आठ अंतरंग सखा है, जो उनकी समस्त लीलाओं में सदैव उनके साथ रहते हैं, अतः उन्हे अष्टसखा भी कहा गया है। (अष्टछाप परिचय पृष्ठ १-२)


अष्टछाप अथवा अष्ट सखा की शुभ नामावली इस प्रकार है-


श्री वल्लभाचार्य जी के शिष्य

१. कुंभनदास

२. सूरदास

३. कृष्णदास

४. परमानंददास


श्री गुसाईंजी विट्ठलनाथजी के शिष्य

५. गोविन्द स्वामी

६. छीत स्वामी

७. चतुर्भुजदास

८. नंददास

आचार्यश्री के समय में श्रीनाथजी के प्रथम नियमित कीर्तनकार सूरदास थे। बाद में परमानंददास भी उन्हे नियमित सहयोग देने लगे थे। कुंभनदास यधपि सूरदास से पहले कीर्तन करते आ रहे थे, किन्तु गृहस्थ होने के कारण उन्हे नियमित रूप से अधिक समय देने की सुविधा नही थी। इस प्रकार श्री महाप्रभुजी के समय सूरदास और परमानंददास नियमित रूप से श्रीनाथजी की सभी झांकियों में कीर्तन करते थे तथा कुंभदास अपने अवकाश के अनुसार उन्हे सहयोग देते थे। अधिकारी कृष्णदास भी सुविधा से उनमें भाग लिया करते थे। श्री विट्ठलनाथजी ने अपने समय में श्रीनाथजी की कीर्तन प्रणाली को सुव्यवस्थित और विस्तृत किया था। अतः आठों समय की झांकियों में पृथक-पृथक कीर्तनकार नियुक्त किये जाने की आवश्यकता प्रतीत हुई थी। इसलिए इन सभी के ओसरे बांध दिये थे सभी अपने ओसरे के अनुसार सम्मुख कीर्तन करते दूसरे सभी झेलते थे।

ये सभी कीर्तनकार प्रभु श्रीनाथजी की कीर्तन सेवामें अपने जीवन के अन्तिम समय तक रहे और अपना जन्म सफल किया। इन अष्ट शाखाओं के पद ही कीर्तन सेवामें गाये जाते हैं।


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