top of page
Search

जोगीलीला

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

जोगीलीला


पुष्टिमार्ग में कुशग्रहणी अमावस्या जोगी-लीला के लिए प्रसिद्द है.

तब शंकर बालक श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए पधारे थे.


शंकरजी इन साकार ब्रह्म के दर्शन के लिए आए. मैया यशोदा को पता चला कि कोई साधु द्वार पर भिक्षा लेने के लिए खड़े हैं तो उन्होंने दासी को साधु को फल देने की आज्ञा की. दासी ने हाथ जोड़कर साधु को भिक्षा लेने व बालकृष्ण को आशीर्वाद देने को कहा.


शंकरजी ने दासी से कहा कि-"मेरे गुरू ने मुझसे कहा है कि गोकुल में यशोदाजी के घर परमात्मा प्रकट हुए हैं. इससे मैं उनके दर्शन के लिए आया हूँ. मुझे लाला के दर्शन करने हैं."


(व्रज में छोटे बालकों को लाला कहते हैं, व शैव साधुओं को जोगी कहा जाता है)


दासी ने भीतर जाकर मैया यशोदा को सब बात बतायी.

यशोदाजी को आश्चर्य हुआ. उन्होंने खिड़की से बाहर झाँककर देखा कि एक साधु खड़े हैं जिन्होंने बाघम्बर पहना है, गले में सर्प हैं, भव्य जटा हैं और हाथ में त्रिशूल है.


मैया यशोदा ने साधु को बारम्बार प्रणाम करते हुए कहा कि- "महाराज आप महान पुरुष लगते हैं. क्या भिक्षा कम लग रही है?

आप माँगिये...मैं आपको वही दूँगी पर मैं लाला को बाहर नहीं लाऊँगी.

हमने अनेक मनौतियाँ मानी हैं तब वृद्धावस्था में यह पुत्र हुआ है.

यह मुझे प्राणों से भी प्रिय है. आपके गले में सर्प है और मेरा लाला अति कोमल है, वह उसे देखकर डर जाएगा."


जोगी वेषधारी शंकरजी ने कहा-"मैया, आपका पुत्र देवों का देव है, वह काल का भी काल है और संतों का तो सर्वस्व है.

वह मुझे देखकर प्रसन्न होगा. माँ, मैं लाला के दर्शन के बिना पानी भी नहीं पीऊँगा. आपके आँगन में ही समाधी लगाकर बैठ जाऊँगा."


ऐसा कहकर वे वहीँ नंदभवन के बाहर ध्यान लगा कर बैठ गए. आज भी नन्दगाँव में नन्दभवन के बाहर आशेश्वर महादेव का मंदिर है जहां भगवान शंकर प्रभु श्रीकृष्ण के दर्शन की आशा में बैठे हैं.


शंकरजी महाराज ध्यान करते हुए तन्मय हुए तब बालकृष्णलाल उनके हृदय में पधारे और बालकृष्ण ने अपनी लीला की.


अचानक बालकृष्ण ने जोर-जोर से रोना शुरु कर दिया.


मैया यशोदा ने उन्हें दूध, फल, खिलौने आदि देकर चुप कराने की बहुत कोशिश की पर वह चुप ही नहीं हो रहे थे.

एक गोपी ने मैया यशोदा से कहा कि आँगन में जो साधु बैठे हैं उन्होंने ही लाला पर कोई मन्त्र फेर दिया है.


तब मैया यशोदा ने शांडिल्य ऋषि को लाला की नजर उतारने के लिए बुलाया. शांडिल्य ऋषि समझ गए कि भगवान शंकर ही कृष्णजी के बाल स्वरूप के दर्शन के लिए आए हैं.

उन्होंने मैया यशोदा से कहा-"मैया, आँगन में जो साधु बैठे हैं, उनका लाला से जन्म-जन्म का सम्बन्ध है. उन्हें लाला का दर्शन करवाइये...तभी बालकृष्ण चुप होंगे।"


मैया यशोदा ने लाला का सुन्दर श्रृंगार किया, बालकृष्ण को पीताम्बर पहनाया, लाला को नजर न लगे इसलिए गले में बाघ के सुवर्ण जड़ित नाखून को पहनाया।


साधू (जोगी) से लाला को एकटक देखने से मना कर दिया कि कहीं लाला को उनकी नजर न लग जाये।


मैया यशोदा ने शंकरजी को भीतर बुलाया।


नन्दगाँव में नन्दभवन के अन्दर आज भी नंदीश्वर महादेव विराजित हैं।


इस प्रसंग का अद्भुत पद सूरदासजी ने गाया है जिसे पढ कर भाव से आनंद लेने का प्रयास करें।


काहू जोगीयाकी दृष्टि लागी कन्हैया मेरौ रोवै हो माई

घर घर पूँछत फिरत जशोदा दूध पीवै ना सोवै ll

कहाँ गए जोगी नंदभवन व्रजमें फिरि फिरि हारे

फन जोगिया कों ढूंढि निकासों सुतकौ ताप निवारौ ll

चलिरे जोगी नंदभवनमें जसुमति मात बुलावै

लटकत लटकत शंकर आवें मनमें मोद बढावे ll

आये जोगी नंदभवनमें राई लौन कर लीनो

वारि फेरि लालनके ऊपर हाथ शीशपै दिनो ll

रोग दोष सब दूरि गयो है किलक हँसे नंदलाला

मगन भई नंदजूकी रानी दीनी मोतिन माला ll

रहो रहो जोगी नंदभवनमें व्रजमें बासो कीजै

जब जब मेरो लाल रोवे तब तब दर्शन दीजै ll

तुम जो जोगी परम मनोहर तुमको वेद बखानैं

बूढ़ों बाबा नाम हमारो सूरश्याम मोहि जानें ll


4 views0 comments

コメント


© 2020 by Pushti Saaj Shringar.

bottom of page