जसोदा हरि पालनैं झुलावै।
हलरावै दुलरावै मल्हावै जोइ सोइ कछु गावै॥
मेरे लाल को आउ निंदरिया काहें न आनि सुवावै।
तू काहै नहिं बेगहिं आवै तोकौं कान्ह बुलावै॥
कबहुं पलक हरि मूंदि लेत हैं कबहुं अधर फरकावैं।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि करि सैन बतावै॥
इहि अंतर अकुलाइ उठे हरि जसुमति मधुरैं गावै।
जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ सो नंद भामिनि पा
डोरी डारुगी महल चढ़़ अईयो रसिया डोरी डारुगी..ऊंचाई
पोरी मे मेरो ससुर सोवत हैं आंगन में ननदुल दुखिया
ऊंची अटारी पलंग विछो हैं तोषक गिलम गलीचा तकिया
रसिक गोविंद अभिराम श्यामघन व्हाई तेरी तपत बुझाऊ रसिया
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