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झारीजी का माहात्म्य

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

झारीजी का माहात्म्य


श्री गुंसाईजी के सेवक एक स्त्री पुरुष ब्राह्मण गुजरात के दोनो निष्कंचनता से श्री ठाकुरजी की प्रेम पूर्वक सेवा करते।

एक दिन श्री गुंसाईजी के सेवक एक सेठ के घर स्त्री दर्शन करने गई। उस स्त्री ने वहा ठाकुरजी की सेवा में खूब वैभव देखा। दर्शन कर के स्त्री अपने घर आई। घर आकर स्त्री सेवा में नही पहुँची। जब बहार से पुरुष आया तब देखा की स्त्री अपरस कर सेवा में नही पहुँची। तब पुरुष ने स्त्री से पूछा की आज सेवा में क्यों नही पहुंचे तब स्त्री कहें आज आप ही सेवा में पहुँचो। पुरुष अपरस कर सेवा में पहुंचे।

सेवा से निवृत्त होने के पश्चात् स्त्री के पास गये और पूछा, क्या हुआ तुम्हें आज सेवा में क्यों नही आये? तब स्त्री कहे की सेवा में तभी पहुचुंगी जब वैभव से सेवा करू। पुरुष कहे "भले वैभव से सेवा करना"।

दुसरे दिन सवेरे दोनों स्त्री पुरुष उठे। पुरुष ने स्त्री से कहा की एक काम करो यहा से एक कोस दूर एक वृक्ष है। वृक्ष के नीचे गड्ढा खोदना उसमे से खूब द्रव्य निकलेगा। एक टोकरी में द्रव्य को भरकर ले आना और खूब वैभव से सेवा करना।

पुरुष के कहे अनुसार स्त्री उस वृक्ष के पास गई वृक्ष के नीचे से खूब द्रव्य निकला। स्त्री द्रव्य को एक टोकरी में भरने लगी। तभी वृक्ष में से एक वाणी प्रकट हुई, तुम्हें मुझे कुछ देना पड़ेगा तभी ये द्रव्य तुम यहा से ले जा सकती हो। स्त्री ने वृक्ष से कहा की क्या चाहिए तुम्हे? तब वृक्ष कहें की मुझे तुम एक झारीजी का फल दो तभी ये टोकरी भरकर द्रव्य तुम यहा से ले जा सकती हो। स्त्री कहें की झारीजी का फल तो में तुम्हें कभी भी नही दे सकती। वृक्ष कहें अधिक हो वो तुम रखना कम हो वो मुझे देना। अब तुम ही सोचो की कितनी झारीजी भरते हो तुम? वृक्ष की ये वाणी सुनकर स्त्री ने द्रव्य वही छोड़ दिया और अपने घर गई। घर जाकर उसने सारी बात पुरुष को कही।

तब पुरुष ने कहा की निष्कंचनता से झारीजी भरे सेवा पहुचे तो इसके फल की क्या कहनी? एक एक झारीजी का फल 100 अश्वमेघ यज्ञ के फल से भी कई अधिक है। अब तू ही बता झारीजी का फल कितना और द्रव्य कितना?

पुरुष की ये बाते सुनकर स्त्री ने कभी द्रव्य की कामना नही करी और मन में नित्य झारीजी भरने का संकल्प किया।

स्त्री का झारीजी भरने की सेवा में ऐसा मन लगा की ठाकुरजी उसे साक्षात् सानुभाव जताने लगे। इस तरह स्त्री पुरुष सदा निष्कंचनता से निसाधन दीन भाव से सेवा करते और प्रभु की कृपा का आनंद लेते। सो स्त्री पुरुष श्री गुंसाईजी के ऐसे कृपापात्र भगवदीय हते।

श्यामसुन्दर श्री यमुने महारानी की जय।


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