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पुरशोत्तम मास

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

पुरशोत्तम मास


हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त माह का प्राकट्य होता है, जिसे अधिकमास, मल मास या पुरूषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष ये अधिक आश्विन के रूप में 18 सितंबर 2020 से 16 ऑक्टोबर 2020 तक रहेगा.


वशिष्ठ सिद्धांत के अनुसार भारतीय ज्योतिष में सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के अंतर से आता है। इसका प्राकट्य सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है


अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान कृष्ण माने जाते हैं। पुरूषोत्तम भगवान कृष्ण का ही एक नाम है। इसीलिए अधिकमास को पुरूषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है। इस विषय में एक बड़ी ही रोचक कथा पुराणों में पढ़ने को मिलती है। कहा जाता है कि भारतीय मनीषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए। चूंकि अधिकमास सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुआ, तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार ना हुआ। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान कृष्ण से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने उपर लें। भगवान कृष्ण ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मल मास के साथ पुरूषोत्तम मास भी बन गया.


अधिक मास के लिए पुराणों में बड़ी ही सुंदर कथा सुनने को मिलती है। यह कथा दैत्यराज हिरण्यकश्यप के वध से जुड़ी है। पुराणों के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने एक बार ब्रह्मा जी को अपने कठोर तप से प्रसन्न कर लिया और उनसे अमरता का वरदान मांगा। चुकि अमरता का वरदान देना निषिद्ध है, इसीलिए ब्रह्मा जी ने उसे कोई भी अन्य वर मांगने को कहा। तब हिरण्यकश्यप ने वर मांगा कि उसे संसार का कोई नर, नारी, पशु, देवता या असुर मार ना सके। वह वर्ष के 12 महीनों में मृत्यु को प्राप्त ना हो। जब वह मरे, तो ना दिन का समय हो, ना रात का। वह ना किसी अस्त्र से मरे, ना किसी शस्त्र से। उसे ना घर में मारा जा सके, ना ही घर से बाहर मारा जा सके। इस वरदान के मिलते ही हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर मानने लगा और उसने खुद को भगवान घोषित कर दिया। समय आने पर भगवान विष्णु ने अधिक मास में नरसिंह अवतार यानि आधा पुरूष और आधे शेर के रूप में प्रकट होकर, शाम के समय, देहरी के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का सीना चीन कर उसे मृत्यु के द्वार भेज दिया.


पुरशोत्तम मास का पुष्टिमार्ग में महत्व


कलियुग सब जुगते अधिकाई।जा जुग मे प्रगटे जग शीतल श्रीवल्लभ सुखदाई।।


जैसे वल्लभ प्राकट्य के कारण कलियुग सभी युगों से अधिक है वैसे ही स्वयं पुरुषोत्तम द्वारा अपनाये जाने तथा अपना नाम देने के कारण पुरुषोत्तम मास सभी मासों से अधिक है।मलमास कहे जाने के कारण इसकी दीनता से प्रसन्न होकर प्रभु ने इसे अपनाया।यही पुष्टिमार्ग की परम विशेषता है।

यहां जो नि:साधन हैं,अहंकाररहित दैन्यभाव से परिपूर्ण हैं वे शीघ्र ही भगवान द्वारा अंगीकृत किये जाते हैं अतः जगत मे दीनहीन, तुच्छ, हीन होना चिंता की बात नहीं है मगर अभिमानी होना चिंताजनक है।वैष्णव को इससे सावधान रहना चाहिये।लाला जितना इससे रुठता है उतना और किसीसे नहीं।जहां जहाँ अभिमान की जरूरत पडे उसकी पूर्ति विवेकधैर्याश्रय से करनी चाहिए तथा अभिमान का परित्याग कर देना चाहिए।


अभिमानश्च संत्याज्य:स्वाम्यधीनत्वभावनात्।


अधिकमास के लिये ठाकुरजी हृदय मे एक भाव प्रकट कर रहे हैं कि एक बार गोलोक मे प्रभु के परिकर मे चर्चा चली कि वैसे तो प्रभु नित्य नूतन हैं आज और काल और दिन प्रति और और देखिये रसिक श्रीगिरिराजधरण, हम भी प्रभु को सुख पहुंचाने वाली सेवा करते ही हैं लेकिन अधिक से अधिक मात्रा मे यह कैसे संभव हो?परिकर ने कहा-चलो क्यों न प्रभु से ही पूछा जाय,अधिक के इस भाव की पूर्ति कैसे हो?

प्रभु का मनोरथ हो तो भक्त पूरा करें जैसे प्रभु भक्तों का मनोरथ पूर्ण करते हैं।भक्तमनोरथपूरकाय नम:।यहां भी भक्तों का मनोरथ पूरा करने के लिये प्रभु को अपना मनोरथ बताना रहा।प्रभु ने कहा-अधिकमास मे जो सेवा विशेष मनोरथ के रुप मे करोगे मै

उसे 'अधिक'रुप मे ग्रहण करुंगा।वह मास भी पुरुषोत्तम मास के रुप मे होगा।

पुरुषोत्तम सभी पुरुषों से अधिक हैं ऐसे पुरुषोत्तम मास भी अधिक है।सभी देवों से अधिक होने के कारण श्रीनाथजी देवदमन हैं।


इस अधिक का आनंद भी अधिक होना चाहिए।जो वैष्णव सालभर सामान्य सेवा से समय निकाल देते हैं उनमे भी अधिक मास मे चैतन्य आ जाता है।इतना उत्साह आ जाता है कि कौनसे दिन क्या मनोरथ करना इसकी सूची भी तैयार हो जाती है।जो मनोरथ के रुप मे विशेष सेवायें नहीं कर पाते उन्हें भी यह स्मरण तो रहता ही है कि अधिकमास चल रहा है और हम कुछ नहीं कर रहे हैं।हर साल आता हो तब तो ठीक है लेकिन तीन साल मे एक बार,वह भी स्वयं प्रभु का मास पुरुषोत्तम मास,तो जाहिर है यह अवसर खोने जैसा नहीं है।प्रभु कहते हैं-मेरे इस मास मे जो जो भी करेगा मै उसे विशेष प्रसन्नता के साथ ग्रहण करुंगा।


गोलोक मे परिकर चिन्मयरुप है।यह तो भूतल पर ही वल्लभ विट्ठल समस्त गोस्वामी बालक,सभी वैष्णवों के साथ गिरधारी के साथ पुरुषोत्तम मास का आनंद उठाते हैं जो प्रभु को अति प्रिय है।पुरुषोत्तम से जुडने पर लौकिक चीज भी अलौकिक हो जाती है।


जैसे कोई नाथद्वारा किसी कार्य के लिये आये साथ मे श्रीनाथजी के दर्शन भी करले लेकिन कोई केवल श्रीनाथजी के लिये ही आये तो प्रभु देखते हैं।साल के सारे मास सामान्य रुप से निकल जायें परंतु यह पुरुषोत्तम मास है,स्वयं प्रभु का मास है यह ध्यान रखकर सारा मास विशेष सेवा,सत्संग,स्मरण मे व्यतीत करे तो वह भी प्रभु देखते ही हैं।केवल देखते ही नहीं, स्वयं भी उसमे शामिल हो जाते हैं।परिकर गोलोक छोडकर भूतल पर आया तो प्रभु भी आगये इस आनंद को लेने और देने।


अस्तु-हर मास का अपना माहात्म्य है अतः कई लोग सकाम भाव से उन मासों के व्रत,जप,पाठ,आयोजनादि करते हैं लेकिन अब आया पुरुषोत्तम मास।इसमे सकाम भाव से कुछ नहीं कर सकते।केवल भक्ति ही कर सकते हैं, पुरुषोत्तम का मास जो है।


देखा जाय तो पुष्टिमार्ग मे बारहों मास पुरुषोत्तम मास जैसा ही है-इतना उत्साह,इतना आनंद-रोज कुछ न कुछ नया।यदि ऐसा नहीं लगता तो फिर आता है पुरुषोत्तम मास नींद उडाने के लिये कि अब तो कुछ विशेष करलो।फिर हर रोज कोई न कोई नया उत्सव।ऐसे उत्सव कभी कभी आता है।कई दिनों पहले से उत्सव की तैयारी शुरु हो जाती है।पुरुषोत्तम मास मे रोज उत्सव।रोज अगले उत्सव की तैयारी।सारा महिना कहां निकल जाता है पता ही नहीं चलता।जिनसे कुछ नहीं ह़ो पाता वे भी दिन भर हाथ मे पुस्तक लेकर यमुनाष्टक, सर्वोतम जी,षोडशग्रंथादि का पाठ करते रहते हैं।एक ऐसा विशेष आनंद होता है कि फिर लगता है बारह मास पुरुषोत्तम मास ही रहे तो कैसा रहे!भागवत कथा सात दिन चलती है तो सारा वातावरण, सारी मानसिकता मे अलौकिक परिवर्तन आ जाता है।बाद मे सब सूना लगता है।

पुष्टिमार्ग मे यह सूना नहीं लगना चाहिये बल्कि पुरुषोत्तम मास से प्रेरणा ग्रहण कर पूरा वर्ष पुरुषोत्तम मास जैसा व्यतीत हो ऐसा प्रयत्न करना चाहिये।तब नित्य नूतन अनुभव समेत यह कीर्तन करना सार्थक हो जाता है-


आज और काल्ह और दिनप्रतिऔर और देखियेरसिक श्रीगिरिराजधरण।

छिनप्रतिनईछबिबरनें सो कौनकबि नित्यहीं शृंगारबागो बरण बरण।।

शोभासिंधु अंग अंग मोहत कोटिअनंगछबिकीउठततरंग विश्वको मनहरण।

चतुर्भुज प्रभु गिरिधर को स्वरुप सुधापान कीजेजीजेरहिये सदांही शरण।।


श्री वल्लभ

नीको लागत पुरुषोत्तम मास।

जाकी महिमा जगत बखानत करत भक्त सब जाकी आस।।

आपही सूरज आपही चंदा आपहीको सब हॉट प्रकास।

आपही जोग भोग सब अर्पत वही प्रभु मम मन उल्लास।।

ज्यो ज्यो दान करत प्रभु हित त्यों त्यों बढ़त प्रेमकी आस।

सूरदास प्रभु सबके स्वामी दास को राखो चरण के पास।।


श्री शुभ अधिकमास (पुरषोत्तम मास) प्रारंभ की मंगल बधाई।


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