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भगवान के लिए अधिक प्रिय कौन है?

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

भगवान के लिए अधिक प्रिय कौन है?


भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा- "हे! अर्जुन, चार प्रकार के उत्तम कर्म करने वाले 1.आर्त 2.अर्थार्थी 3.जिज्ञासु 4.ज्ञानी भक्त मेरा स्मरण करते हैं।


इनमें ज्ञानी श्रेष्ठ हैं। क्योंकि वे हमेशा अनन्य-भाव से मेरी निर्मल (पवित्र) भक्ति में लीन रहते हैं। ऐसे भक्तों को मैं अत्यंत प्रिय होता हूँ तथा मुझे भी वे अत्यंत प्रिय होते हैं।


उपरोक्त चार प्रकार के भक्त मेरे लिए प्रिय है। परंतु मेरे अनुसार ज्ञानी भक्त मेरा ही स्वरूप होते हैं। क्योंकि वे स्थिर बुद्धि वाले होते हैं। उनका सबसे बड़ा लक्ष्य मुझे ही समझ कर मुझ में ही स्थित रहते हैं।


अनेक जन्मों के पश्चात अपने अंतिम जन्म में ज्ञानी भक्त मेरी शरण में आते हैं। तब वे यह जान लेते हैं कि सबके हृदय में बसने वाला मैं ही हूँ। ऐसे व्यक्ति महात्मा होते हैं और वे बिरले (दुर्लभ) होते हैं"।

इस प्रकार श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा।


आर्त वे होते हैं, जो दुःख से छुटकारा पाना चाहते हैं। अर्थार्थी धन-दौलत चाहने वाले होते हैं। जिज्ञासु सिर्फ मुझे जानने की इच्छा रखते हैं। ज्ञानी वे है जो हमेशा अपनी भक्ति से परमात्मा का स्मरण करते रहते हैं।वे सिर्फ मोक्ष चाहते हैं।


ज्ञानी सभी के प्रति एकात्म-भाव रखते हैं। समत्व-भाव (समान दृष्टि) भी रखते हैं। परमात्मा के लिए तो सभी प्रिय होते हैं। किंतु ज्ञानी कुछ अधिक प्रिय होते हैं।


किसी न किसी जन्म में ऐसा ज्ञान प्राप्त होगा, जिससे हम यह जान लेंगे कि समस्त प्राणियों के हृदय में परमात्मा ही स्थित हैं। उसी ज्ञान के कारण हम महात्मा बनेंगे। इसलिए भगवान कह रहे हैं कि एकात्म-भाव से परमात्मा की उपासना करना चाहिए। तब हम भी भगवान के प्रिय बन सकते हैं और अंत में मोक्ष भी पा सकते हैं।


(भगवद् गीता के 7-16 से 7-19 तक के श्लोकों के भावानुसार।)


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