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व्रज – आश्विन कृष्ण सप्तमी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – आश्विन कृष्ण सप्तमी

Wednesday, 09 September 2020


श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है.

ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है.


मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को मल्लकाछ-टिपारा एवं पटका का श्रृंगार धराया जायेगा.


मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


ग्वालिनी मीठी तेरी छाछि l

कहा दूध में मेलि जमायो साँची कहै किन वांछि ll 1 ll

और भांति चितैवो तेरौ भ्रौह चलत है आछि l

ऐसो टक झक कबहु न दैख्यो तू जो रही कछि काछि ll 2 ll

रहसि कान्ह कर कुचगति परसत तु जो परति है पाछि l

‘परमानंद’ गोपाल आलिंगी गोप वधू हरिनाछि ll 3 ll


साज – आज श्रीजी में श्री गोवर्धन शिखर, सांकरी खोर, गौरस बेचने जाती गोपियों एवं श्री ठाकुरजी एवं बलरामजी मल्लकाछ-टिपारा धराये भुजदंड से मटकी फोड़ने के लिए श्रीहस्त की छड़ी ऊंची कर रहे हैं एवं मटकी में से गौरस छलक रहा है ऐसे सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज 

हरे रंग का मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. इस श्रृंगार को मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार कहा जाता है. ठाड़े वस्त्र गुलाबी के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना तथा सोने के सर्वआभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें स्वर्ण और मोती के टिपारे के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.

कमल माला धराई जाती हैं.

श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, झिने लहरिया के वेणुजी और वेत्रजी का धराये जाते हैं.

पट हरा एवं गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती हैं.


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