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व्रज - आषाढ़ कृष्ण षष्ठी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - आषाढ़ कृष्ण षष्ठी

Wednesday, 30 June 2021


केसरी मलमल में गुलाबी छाप की धोती, पटका एवं श्रीमस्तक पर छोर वाली गोल पाग और श्वेत मोरपंख की चंद्रिका के शृंगार


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


जब मेरो मोहन चलेगो घटुरुवन तब हौं री करौंगी वधाई l

सर्वसु वारी देहुँगी तिहि छिनु मैया कहि तुतुराई ll 1 ll

यशोदा के वचन सुनत ‘केशो प्रभु’ जननी प्रीति जानी अधिकाई l

नंदसुवन सुख दियो मात कों अतिकृपाल मेरो नंद ललाई ll 2 ll


साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग की प्रभु को पलना झुलाते पूज्य गौस्वामी बालकों के चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज प्रभु को केसरी मलमल में गुलाबी छाप की धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता हैं. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा एवं मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की छोर वाली गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, श्वेत मोरपंख की चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में एक जोड़ी हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं हमेल की भांति दो मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, गंगा जमुनी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट एवं गोटी ऊष्णकाल के राग-रंग के आते हैं.


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