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व्रज - फाल्गुन कृष्ण एकादशी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - फाल्गुन कृष्ण एकादशी

Tuesday, 09 March 2021


कान्हा धर्यो रे मुकुट खेले होरी कान्हा धर्यो रे ।।


ईतते आये कुंवर कन्हाई,

उतते आई राधा गोरी............... कान्हा


कहां तेरो हार कहां नकवेसर,

कहां मोतीयनकी लर तोरी........ कान्हा


गोकुल मेरो हार मथुरा नकवेसर,

बृदावन में लर तोरी.................. कान्हा


चोवा चंदन अगर अरगजा,

अबिर उडावो भर भर झोरी....... कान्हा


पुरुषोत्तम प्रभु की छबी निरखत,

फगुवा लियो भर भर झोरी........ कान्हा


मुकुट-काछनी के श्रृंगार


विजया एकादशी


विशेष – आज विजया एकादशी है. विश्व के सभी धर्माचार्यों ने कई वस्तुओं को निषेध कहा है उन सभी वस्तुओं को श्री वल्लभाचार्यजी ने प्रभु की सेवा में जोड़ कर उनका सदुपयोग किया है.


उदाहरणार्थ काम, क्रोध, मोह एवं लोभ मानव के शत्रु हैं एवं इनका त्याग करने को सर्व धर्माचार्य कहते हैं परन्तु श्रीमद वल्लभाचार्यजी ने इन चारों वस्तुओं को प्रभु सेवा से जोड़ने की आज्ञा की जिससे ये सभी भी भगवदीय बनें. इस अमूल्य आज्ञा के अनुसरण करने वाले कई प्रभु के कृपापात्र वैष्णवों ने काम, क्रोध, लोभ एवं मोह को प्रभु सेवा में विनियोग कर इन पर विजय प्राप्त की अतः आज की एकादशी को विजया एकादशी कहा जाता है.


शीत कम हो गयी है अतः आज से श्रीजी में मुकुट काछनी का श्रृंगार प्रारंभ हो जायेगा. गोपाष्टमी के बाद आज ही श्रीजी में मुकुट धराया जा रहा है.


प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है.


अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.


जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है.


जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.


जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है.


आज प्रभु को पीले बसंत के छांटा की काछनी व पीताम्बर, चोवा की चोली व सफ़ेद लट्ठा के ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं.


आज की विशेषता यह है कि आज श्रीजी को धराये जाने वाले वस्त्र द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं. वस्त्रों के साथ श्रीजी के भोग हेतु सामग्री की एक छाब भी वहां से आती है.


श्रृंगार दर्शन


कीर्तन – (राग : काफी)


पीताम्बर काजर कहाँ लग्यो हो ललना

कोन के पोंछे हें नयन ll ध्रु ll

कोनके गेह नेह रस पागे वे गोरी कछु ओर l

देहु बताय कान राखति हों ऐसे भये चितचोर ll 1 ll

अधरन अंजन लिलाट महावर राजत पिक कपोल l

घुमि रहे रजनी जागेसे दुरत न काम कलोल ll 2 ll

नखनिशान राजत छतियन पर निरखो नयन निहार l

झुम रहीं अलके अलबेली पागके पेंच संवार ll 3 ll

हम डरपे जसुदाजुके त्रासन नागर नंदकिशोर l

पाय परे फगुवा प्रभु देहो मुरली देहो अकोर ll 4 ll

धन्य धन्य गोकुलकी गोपी, जीन हरी लीने हराय l

‘नंददास’ प्रभु कीये कनोड़े छोड़े नाच नचाय ll 5 ll


साज – आज श्रीजी में फ़िरोज़ी रंग के आधार-वस्त्र पर कमल के फूलों के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. यह पिछवाई केवल श्रृंगार दर्शन में ही धरायी जाती है क्योंकि उसके बाद सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल अबीर से खेल किया जाता है.


वस्त्र – श्रीजी को आज चंपाई (पीले) रंग का सूथन, काछनी, रास-पटका एवं चोवा श्याम रंग की चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (लट्ठा) के धराये जाते हैं.


श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल, हरे, मेघश्याम एवं सफ़ेद मीना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर मीना की मुकुट टोपी, मीना का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में जड़ाव मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की शिखा (चोटी) धरायी जाती है.

दो माला अक्काजी की धरायी जाती है.


श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट चीड़ का व गोटी फागुन की आती है.


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