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व्रज - फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी

Friday, 12 March 2021


श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है.

ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है.


मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को आज प्रभु को पिले में हरी छाँट के चाकदार वस्त्र पर धराये जाते है. श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर जमाव का क़तरा धराया जाता है.

राजभोग में एक गुलाल की पोटली बँधे.


आज राजभोग के खेल में प्रभु की कमर पर एक पोटली गुलाल की बांधी जाती है.


कीर्तन – (राग : बिलावल)


वंदो मुनसाई नंदके जुवती झंडा केसें लेहोजु l ये सब सुंदरि घोखकि क्यों परिरंभन देहो ll 1 ll

फाल्गुन मास देत फगुआ अति क्रीड़ा रस खेलो l तनकी गति ओर भई बोली ढोली मेलो ll 2 ll

काहेको अकुलात हो मन को भायो करि हैं l हो भैया बलदेवको पृथक पृथक करि धरि है ll 3 ll

पांच सखी मिलि एक व्है बीच झंडा ले रोप्यो l फरहर रतिपति ऊपरे बहोत नगन जट ओप्यो ll 4 ll....अपूर्ण


साज – आज श्रीजी में आज सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को पिले में हरी छाँट का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.


श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

बायीं ओर मीना की चोटी धरायी जाती है.

श्रीकंठ में अक्काजी की एक माला धरायी जाती है.

पीले एवं लाल पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.


संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं

शयन समय श्रीमस्तक पर रुपहली लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.


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