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व्रज - फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा

Sunday, 14 March 2021


रसिया को नार बनावो री रसिया को।

कटि लहंगा गल माल कंचुकी,

वाको चुनरी शीश उढाओ री।रसिया को॥१॥

बाँह बडा बाजूबंद सोहे,

वाको नकबेसर पहराओरी ।रसिया को ॥२॥

लाल गुलाल दृगन बिच काजर,

वाको बेंदी भाल लगावो री ।रसिया को ॥३॥

आरसी छल्ला और खंगवारी,

वाको अनपट बिछुआ पहराओ री।रसिया को ॥४॥

नारायण करतारी बजाय के,

वाको जसुमति निकट नचाओ री रसिया को ॥५॥


विशेष – आज का श्रृंगार ऐच्छिक है एवं संभवतया निम्न वर्णित श्रृंगार धराया जा सकता है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, मौसम की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है.


मेरी जानकारी के अनुसार आज प्रभु को श्वेत लट्ठा के चाकदार वागा धराये जाते हैं व श्रीमस्तक पर फेटा का साज धराया जाता हैं.


राजभोग खेल में प्रभु की कटि में गुलाल व की पोटली बांधी जाती है. आज प्रभु के कपोल पर गुलाल अबीर लगाये जाते जाते है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन (राग : बिलावल)


बरसाने की गोपी मागन फगुवा आई l कियो हे जुहार नंदजुको भीतर भवन बुलाई ll 1 ll

एक नाचत एक गावत एक बजावत तारी l काहे मोहन राय दूरि रहे मैयाय दिवावत गारी ll 2 ll

आदर देत व्रजरानी अब निज भागि हमारे l प्रीतम सजन कुलवधू पाये दरस तुम्हारे ll 3 ll

सुने कुंवरि मेरी राधे अबही जिन मुख मांडो l जेंवत श्याम सखन संग जिन पिचकाई छांडो ll 4 ll

केसरि बहोत अरगजा कित मोहन पर डारो l सीत लगे कोमल तन तुमही चित्त विचारो ll 5 ll.....अपूर्ण


साज - आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं और सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.


श्रृंगार – आज श्रीजी को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, मोरशिखा, दोहरा कतरा एवं बायीं और शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबंदी-लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में अक्काजी की एक माला धरायी जाती है.

पीले एवं लाल पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.


संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. फेटा बड़ा नहीं किया जाता व लूम तुर्रा भी नहीं धराये जाते हैं.


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