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व्रज - फाल्गुन शुक्ल सप्तमी(प्रथम)

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - फाल्गुन शुक्ल सप्तमी(प्रथम)

Saturday, 20 March 2021


प्रभु मथुराधीशजी (कोटा) का पाटोत्सव, पुष्टिमार्गीय प्रधान गृहाधीश परमपूज्य गौस्वामी तिलकायत श्री इन्द्रदमनजी (श्री राकेशजी) महाराजश्री का जन्मदिवस


विशेष - आज कोटा में विराजित निधि स्वरुप श्री मथुराधीशजी का पाटोत्सव है.

इसके अतिरिक्त आज श्रीजी में पुष्टिमार्गीय प्रधान गृहाधीश परमपूज्य गौस्वामी तिलकायत श्री इन्द्रदमनजी (श्री राकेशजी) का जन्मदिवस है.(विस्तृत विवरण अन्य पोस्ट में)


दोनों शुभ प्रसंगों की श्रीमान तिलकायत, चिरंजीवी विशाल बावा व समस्त पुष्टि-सृष्टि को बधाई


श्रीजी का सेवाक्रम - तिलकायत का जन्मदिन होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.


आज प्रभु को विशेष रूप से पतंगी चाकदार वागा और श्रीमस्तक पर दुमाला के ऊपर सेहरे का श्रृंगार धराया जाता है.

श्रृंगार दर्शन में सेहरे के भाव की चित्रांकन की पिछवाई आती है जिसे ग्वाल दर्शन में बड़ा कर लिया जाता है.


श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.


शृंगार दर्शन


साज – श्रीजी में आज संकेत वन में विवाह लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को पतंगी रंग का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं राजशाही पटका धराये जाते हैं.

ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल, हरे, मेघश्याम एवं सफ़ेद मीना व स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर पतंगी रंग के दुमाला के ऊपर स्वर्ण का मीनाकारी का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. दुमाला के दायीं ओर सेहरे की मीना की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

एक चन्द्रहार व दो माला अक्काजी की धरायी जाती है. श्वेत एवं पीले पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट चीड़ का व गोटी चाँदी की आती है.


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