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व्रज – भाद्रपद कृष्ण अमावस्या

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – भाद्रपद कृष्ण अमावस्या

Wednesday, 19 August 2020


पुष्टिमार्ग में आज की कुशग्रहणी अमावस्या जोगी-लीला के लिए प्रसिद्द है.

आज के दिन शंकर बालक श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए पधारे थे.


विशेष – आज की भाद्रपद कृष्ण अमावस्या को कुशग्रहणी अमावस्या भी कहा जाता है.

इसे कुशग्रहणी अमावस्या इसलिए कहा जाता है कि इस दिन उखाड़ा गया दर्भ (दूब) निःसत्व नहीं होता एवं इसे आवश्यकतानुसार (ग्रहण आदि के समय) उपयोग में लिया जा सकता है.


विशेष – प्रतिपदा क्षय के कारण राधाष्टमी की आठ दिवस की बधाई कल एकम की जगह आज अमावस से बेठेगी. आज से प्रतिदिन अष्ट सखियों का प्राकट्योत्सव मनाया जाता है. इस भाव से आठ दिवस तक नित्य नूतन श्रृंगार, भोग और कीर्तनगान होता है.

पुष्टिमार्ग में श्रीस्वामनिजी(राधाजी) को श्रीकृष्ण की अभिन्न मुख्य शक्ति मानते है। जिनका सहज निवास श्रीकृष्ण के साथ सर्वत्र है।

आज के दर्शन एवं पोस्ट इसी आनंद से परिपूर्ण हैं इसे पूरा पड़े.


राधाष्टमी की बधाई आठ दिवस की ही क्यों होती है ?


श्री राधिकाजी प्रभु श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी हैं.

षोडश कलायुक्त प्रभु श्रीकृष्ण का प्राकट्य हुआ जिसका अर्धांग श्रीराधा हैं. श्री गुसांईजी ने अष्टयाम सेवा, अष्टसखा, अष्टछाप के कवि तथा भौतिक रूप में अष्टसिद्धि एवं अष्टांग योग रूप सेवा की स्थापना की थी.

जिससे आठ दिवस की बधाई बैठती है.

श्री राधिकाजी की सखियाँ भी आठ है, इस भावना से आठ दिवस की झांझ की बधाई बैठती है.


उत्सव की बधाई बैठती है अतः आज श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.


श्रीजी में आज श्रीमस्तक का श्रृंगार ऐच्छिक है परन्तु लाल, केसरी अथवा पीले रंग का धोती-उपरना अवश्य धराया जाता है.

मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को लाल मलमल के धोती पटका एवं श्रीमस्तक पर क़तरा चन्द्रिका धराये जायेंगे.


सभी बड़े उत्सवों की बधाई की भांति ही आज से आठ दिन अमंगल (श्याम, नीले या गहरे हरे) रंगों के वस्त्र नहीं धराये जाते.

आज भोग विशेष कुछ नहीं पर राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.


सभी वैष्णवों को राधाष्टमी की बधाई बैठवे की बधाई


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : धनाश्री)


बरसाने वृषभान गोपके आनंद की निधि आई l

धन्य धन्य कूख रानी कीरति की जिन यह कन्या जाई ll 1 ll

इन्द्रलोक भुवलोक रसातल देखि सुनि न गाई l

सिंधुसुता, गिरिसुता सची रति इन सामान कोऊ नाई ll 2 ll

आनंद मुदित जसोदा रानी लालकी करों सगाई l

प्रभु कल्यान गिरिधरकी जोरी विधना भली बनाई ll 3 ll


साज – आज श्रीजी में लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी-तकिया के ऊपर लाल एवं चरण चौकी के ऊपर सफेद बिछावट होती है.

सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी आदि जड़ाव स्वर्ण के आते हैं. चांदी की त्रस्टीजी भी धरी जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल (चित्र में सुवापंखी (तोते के पंख जैसे हल्के हरे) रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्वआभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम तथा मोती की गोल-चन्द्रिका क़तरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.

श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. हीरे-मोती की एक मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती है. गुलाब के पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट लाल एवं गोटी मीना की धराई जाती हैं.


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