व्रज - भाद्रपद कृष्ण अष्टमी
बुधवार, 12.8.2020
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की आप सभी को मगलमय बधाई
जय श्री कृष्ण
आज का उत्सव महा-महोत्सव कहलाता है. पुष्टिमार्गीय वैष्णवों के लिए यह महोत्सव सबसे अधिक महत्व का होता है.
महा-महोत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
आज दोहरी देहरी मांडी जाती है. द्वार के कोनों पर हल्दी एवं कुंकुम से कमल, स्वास्तिक, पलना, लताएँ आदि चित्रकारी की जाती है. गेंद, चैगान, दिवाला आदि सब सोने आते हैं.
अत्यंत उत्साह एवं उमंग से आज का उत्सव मनाया जाता है.
दिन में सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.
श्रीजी में प्रातः 4 बजे शंखनाद होते हैं और 4.45 मंगला दर्शन खुलते हैं. खुले दर्शनों में ही मंगला आरती के उपरांत टेरा लेकर प्रभु का उपरना बड़ा कर (हटा) दिया जाता है और तिलकायत महाराज कुंकुम से तिलक कर प्रभु को पंचामृत स्नान कराते हैं. ( इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण तिलकायत परिवार नाथद्वारा नही पधार सके जिस कारण श्रीप्रभु को कुंकुम से तिलक कर प्रभु को पंचामृत स्नान मुखिया जी द्वारा किया जावेगा।)
पंचामृत स्नान में प्रभु को क्रमशः दूध, दही, घृत (घी), शहद और बूरा (पकी हुई शक्कर का चूरा) से स्नान कराया जाता है. पंचामृत स्नान के समय प्रभु विभिन्न रंगों में दिखायी पड़ते हैं और तब प्रभु की छटा अलौकिक दिखायी पड़ती है.
पंचामृत के छींटे जो प्रभु स्वरूप से स्पर्श होकर उड़ते हैं और वल्लभ स्वरूपों के चरणों में लगते है, वैष्णव उनके स्पर्श से धन्य धन्य हो जाते हैं.
पंचामृत स्नान के पश्चात् प्रभु को चन्दन, आवंला, उबटना एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) आदि से दोहरा अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
आज प्रभु को जन्मदिवस के महात्म्य स्वरूप यशोदोत्संगलालित स्वरूप के आधार रूप परब्रह्म श्रीकृष्ण के रूप में पंचामृत स्नान कराया जाता है.
एक महत्वपूर्ण बात
- आज प्रभु को उनके जन्मदिन के महात्म्य स्वरूप यशोदोत्संगलालित स्वरूप के आधार रूप परब्रह्म श्रीकृष्ण के रूप में पंचामृत स्नान कराया जाता है.
रात्रि को प्रभु जन्म उपरांत तो श्री बालकृष्णलालजी के स्वरुप को पंचामृत होता है.
- पुष्टिमार्ग में चारों जयंतियों (श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, श्रीरामनवमी, श्री वामन द्वादशी व श्री नृसिंह जयंती) के दिन फलाहार किया जाता है.
इसका भाव यह है कि जब हम प्रभु के सम्मुख जाएँ अथवा प्रभु हमारे घर पधारें तब तन, मन से शुद्ध हों और आयुर्वेद में भी कहा गया है कि उपवास अथवा फलाहार से तन व मन की शुद्धि होती है.
पंचामृत को दर्शन के पश्चात् श्रीजी के पातलघर से सभी वैष्णवों को वितरित किया जाता है जिसे प्रभु प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं.
श्रृंगार काफी देर से लगभग 10 बजे खुलते हैं क्योंकि पंचामृत स्नान के पश्चात प्रभु स्वरुप अत्यधिक चिकना हो जाता है. साथ ही आज का श्रृंगार, आभरण आदि भी अत्यधिक भारी में भारी होते हैं (जिनका वर्णन आगे इसी में है).
श्रृंगार दर्शन में श्रीजी को तिलक एवं अक्षत किया जाता है, भेंट रखी जाती है. इस दौरान शंख, झालर, धंटा आदि बजाये जाते हैं और वैष्णव मंगलगान गाते हैं.
प्रभु के सम्मुख हल्दी से चैक पुराया जाता है. राई, लोन से प्रभु की नजर उतारी जाती है.
श्रीजी के मुख्य पंड्याजी वर्षपत्र पढ़ते हैं.
आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त चन्द्रकला एवं केशरी बासोंदी की हांड़ी, चार प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
राजभोग में अनसखडी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी भोग में मीठी सेव व केसरी पेठा आरोगाये जाते हैं.
राजभोग दर्शन दोपहर लगभग 2 बजे खुलते हैं.
राजभोग दर्शन -
कीर्तन - (राग: सारंग)
आज महा मंगल मेहराने ।
पंच शब्द ध्वनि भीर बधाई घर घर बैरख बाने ।।1।।
ग्वाल भरे कांवरि गोरस की वधु सिंगारत वाने ।
गोपी ग्वाल परस्पर छिरकत दधि के माट ढुराने ।।2।।
नाम करन जब कियो गर्गमुनि नंद देत बहु दाने ।
पावन जश गावति ‘कटहरिया’ जाही परमेश्वर माने ।।3।।
साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की सुनहरी जरी की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचैकी के ऊपर सफेद मखमल मढ़ी हुई होती है.
वस्त्र - श्रीजी को आज केसरी जामदानी के रुपहली जरी की तुईलैस से सुसज्जित चाकदार एवं चोली धरायी जाती है. सूथन सुनहरी रेशमी छापा का होता है. लाल रंग का पीताम्बर चैखटे के ऊपर धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम होते हैं.
श्रृंगार - प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी से भारी श्रृंगार धराया जाता है. उत्सव के तीन जोड़ी के नवरत्नों के आभरण धराये जाते हैं. हांस, त्रवल, दो हालरा, बघनखा आदि धराये जाते हैं.
कली, कस्तूरी, वैजयंतीमाला आदि सभी धरायी जाती है.
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर जमाव का शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.
पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे-मोती के जड़ाव का चैखटा धराया जाता है. प्रभु के मुखारविंद पर केशर से कपोलपत्र किये जाते हैं. पीले एवं श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.
पट, गोटी जड़ाऊ व आरसी बड़ी उस्ताजी वाली आती है.
राजभोग अनोसर पश्चात उत्थापन सायंकाल लगभग 7.15 बजे खुलते हैं.
संध्या आरती में जयंती के फलाहार के रूप में मलाई की बासोंदी और खोवा और फीका में घी में तला बीज-चालनी का सूखा मेवा आरोगाया जाता है.
संध्या-आरती दर्शन लगभग रात्रि 8.15 बजे खुलते हैं और लगभग रात्रि 9.00 बजे से जागरण के दर्शन होते हैं जो कि रात्रि लगभग 11.45 तक खुले रहते हैं.
तदुपरांत रात्रि 12 बजे भीतर शंख, झालर, घंटानाद की ध्वनि के मध्य प्रभु का जन्म होता है।
प्रभु जन्म के समय नाथद्वारा नगर के रिसाला चैक में प्रभु को 21 तोपों की सलामी दी जाती है. इस अद्भुत परंपरा के साक्षी बनने के लिये प्रतिवर्ष वहां हजारों की संख्या में नगरवासी व पर्यटक एकत्र होते हैं.
प्रभु सम्मुख विराजित श्री बालकृष्णलालजी पंचामृत स्नान होता है,
महाभोग धरा जाता है जिसमें पंजीरी के लड्डू, मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, मेवाबाटी, केशरिया घेवर-बाबर, केशरिया चन्द्रकला, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बर्फी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), केशर युक्त बासोंदी, जीरा युक्त दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी, घी में तला हुआ बीज-चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फल आदि अरोगाये जाते हैं.
महाभोग की सखड़ी में राजभोग की भांति सखड़ी की सामग्री, पांचभात, मीठी सेव, केसरी पेठा आदि अरोगाये जाते हैं.
वैष्णवों के घर श्री ठाकुरजी को शयन पश्चात पोढ़ा दिया जाता है और जागरण नहीं किया जाता. नवमी के दिन श्री ठाकुरजी को जगाकर, मंगल भोग धर कर, सरा कर श्रृंगार किया जाता है.
राजभोग में अदकी सामग्रियां धर कर पलने में झूला कर नन्दोत्सव मनाया जाता है परन्तु मंदिरों दृ हवेलियों आदि में अष्टमी के रात्रि को महाभोग, नवमी के दिवस प्रातः नन्दोत्सव, इसके पश्चात मंगला, श्रृंगार एवं राजभोग आदि का सेवाक्रम किया जाता है.
इस उत्सव में सेवाक्रम मंदिरों में और वैष्णवों के घरों में थोड़ा अलग-अलग होता है.
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