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व्रज - भाद्रपद कृष्ण एकादशी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - भाद्रपद कृष्ण एकादशी

Saturday, 15 August 2020


आज अजा एकादशी के शृंगार के दर्शन का आनंद ले एवं महापापी अजामिल के प्रसंग में प्रभु के जीव पर अनुग्रह को आत्मसात करे.


अजा एकादशी


विशेष – महापापी अजामिल जिसने अपने अंतिम समय में अपने स्वयं के पुत्र ‘नारायण’ के नामोच्चारण के निमित प्रभु का नाम उच्चारण किया था. प्रभु की दयालुता देखें कि केवल अंत समय में ‘नारायण’ के नाम के उच्चारण मात्र से उन्होंने आज के दिन अपने देवदूत भेज अजामिल पर अनुग्रह कर उसका उद्धार किया था. प्रभु ने यह अपना अनुग्रह प्रकट करने के लिए किया इसी लिए कहते हे की प्रभु कर्तुम अकर्तुम अन्यथाकर्तुम सर्वसमर्थ है।आज की एकादशी उसी अजामिल के नाम से अजा एकादशी कहलाती है.

ये अध्याय से यह सीख मिलती है कि हम सब पुष्टि वैष्णवो को ठाकुरजी की सेवा और नाम किर्तन सतत अंतिम श्र्वास तक करना है , कितनी भी विषम परिस्थिति हमारे जीवन में क्यों न आए ?

ठाकुरजी की सेवा और ठाकुरजी से स्नेह यही पुष्टि जीव का लक्ष्य होना चाहिए ।

मनुष्य चाहे जितना बड़ा पापी हो , चाहे जितना नि:साधन हो ; यदि सच्चे ह्रदय से एकबार भी प्रभु की शरण स्वीकार ले तो प्रभु उसको " स्वजन " मान लते हैं . इसीलिए महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्यजी ने "कृष्णाश्रयस्तोत्र" में कहा हैं :-


"पापसक्तस्य दीनस्य कृष्ण एव गतिर्मम"


भावार्थ :- सुखी हो या दु:खी , पापी हो या निष्पाप , धनवान हो या निर्धन , साधन-सम्पन्न हो या नि:साधन ; सभी को श्रीकृष्ण की शरण में ही जाना चाहिए .

सब देवें के देव , सर्वशक्तिमान , सर्वकारण ऐसे श्रीकृष्ण को छोड़ कर अन्य किसी की शरण में क्यों जाएँ ?

इसीलिए पुष्टिमार्ग श्रीकृष्ण की अनन्य भक्ति का मार्ग

दिखाता/सिखाता है . (अजामिल का सम्पूर्ण प्रसंग माहत्य सहित अन्य पोस्ट में)


जनमाष्टमी के उपरांत आज से पुनः सभी साज पर सफेदी चढ़े. टेरा, चौरसा आदि सभी नित्य के आ जाते हैं.


आज से अमावस्या तक प्रभु को बाल-लीला के श्रृंगार धराये जाते हैं एवं बाल-लीला के ही अद्भुत पद गाये जाते हैं.


आज श्रीजी प्रभु को नियम से यह हल्का श्रृंगार धराया जाता है जिसमें लाल पिछोड़ा, जन्माष्टमी वाला केसरी गाती का पटका, श्रीमस्तक पर गोल पाग के ऊपर लूम की रुपहली किलंगी धरायी जाती है. नन्दउत्सव के भाव के चित्रांकन की पिछवाई आती है.


कल रविवार, 16 अगस्त 2020 को वत्स द्वादशी (बच्छ बारस) है.

राजस्थान एवं व्रज सहित उत्तर-भारत के अधिकतर भागों में आज माताएँ बछड़े सहित गाय का पूजन करती हैं और अपने पुत्र की दीर्घायु हेतु व्रत रखती हैं.

ऐसी मान्यता है कि आज के दिन गाय के दूध पर उसके बछड़े का ही अधिकार होता है अतः गाय के दूध का सेवन नहीं किया जाता. चाकू से काटी सब्जियां भी नहीं खायी जाती, गेहूं के आटे का उपयोग नहीं किया जाता अतः मक्की अथवा बाजरे की रोटी खायी जाती है. मूंग-चांवल, अनारदाना की कढ़ी, चना-चांवल मुख्य रूप से खाए जाते हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन : (राग – सारंग)


जब मेरो मोहन चलेगो घुटुरुवन तब हो री करोंगी वधाई l

सर्वसु बारि देहूंगी तिहि छिनु मैया कहे तुतुराई ll 1 ll

यशोदा के वचन सुनत ‘केशो प्रभु’ जननी प्रीति जानी अधिकाई l

नंद सुवन सुख दियो मात कों अतिकृपाल मेरो नंदललाई ll 2 ll


साज – नन्दभवन में बधाई देने एवं दर्शन करने को आये व्रजभक्तों की भीड़ एवं दूसरी ओर छठी पूजन और लालन को पलना झुलाते नंदबाबा और यशोदाजी के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई आज श्रीजी में आती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. चरणचौकी, पड़घा, बंटाजी आदि जड़ाव स्वर्ण के धरे जाते हैं.


वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा (षष्ठी उत्सव वाला) धराया जाता है. जन्माष्टमी वाला केसरी रंग का गाती का पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सुवापंखी हरे (तोते के पंखों के जैसे हल्के हरे) रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती तथा सोने के आभरण धराये जाते हैं.


श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, पन्ना की गोटी, रुपहली लूम की किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.

हालरा बघनखा और हमेल धराये जाते हैं.

पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं.


श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी और एक वेत्रजी धराये जाते हैं. पट लाल व गोटी चांदी की आती है.


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