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व्रज - भाद्रपद कृष्ण द्वादशी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - भाद्रपद कृष्ण द्वादशी

Sunday, 16 August 2020


वत्स द्वादशी (बच्छ बारस)


राजस्थान एवं व्रज सहित उत्तर-भारत के अधिकतर भागों में आज माताएँ बछड़े सहित गाय का पूजन करती हैं और अपने पुत्र की दीर्घायु हेतु व्रत रखती हैं.


ऐसी मान्यता है कि आज के दिन गाय के दूध पर उसके बछड़े का अधिकार होता है अतः गाय के दूध का सेवन नहीं किया जाता.

चाकू से काटी सब्जियां भी नहीं खायी जाती, गेहूं के आटे का उपयोग नहीं किया जाता अतः मक्की अथवा बाजरे की रोटी खायी जाती है. मूंग-चांवल, अनारदाना की कढ़ी, चना-चांवल मुख्य रूप से खाए जाते हैं.


प्रातः सभी महिलाऐं अपने पुत्रों के साथ सुन्दर लाल-पीले वस्त्र धारण कर अपने-अपने मोहल्ले में (जहाँ किसी गाय ने हाल ही में बछड़े को जन्म दिया हो) उस घर या गौशाला जाकर गाय और बछड़े की पूजा करती है और अपने पुत्र की दीर्घायु की कामना करती है.


गाय के गोबर में चांदी के सिक्के से पूजा की जाती है.


गाय और बछड़े को अंकुरित मूंग-चने, बाजरे के लड्डू और नारियल भोग के रूप में खिलाये जाते हैं और अपने परिवार जनों को नारियल का प्रसाद दिया जाता है.


ऐसा कहा जाता है कि जब प्रभु श्रीकृष्ण अढाई वर्ष के थे तब आज के दिन ही यशोदाजी ने भी गाय और बछड़े का पूजन कर शगुन के रूप में उनको वन में बछड़े चराने को भेजा था.

इस कारण से आज का दिवस वत्स द्वादशी कहलाता है.


इसके अतिरिक्त लाला अक्षय तृतीया को अपने मुंडन के दिवस भी वन में गौ-चारण को गये परन्तु भीषण गर्मी से बेहाल प्रभु को थोड़े ही समय में लौट कर आना पड़ा.

यह प्रसंग मैं अक्षय तृतीया को बता चुका हूँ.

यद्यपि लाला ने यथाविधि गौ-चारण गोपाष्टमी के दिवस से प्रारंभ किया था और उसी दिन से गोपाल कहाए थे.


गुजरात में गौ-वत्स द्वादशी दीपावली के पहले आने वाली कार्तिक कृष्ण द्वादशी को होती है.


श्रीजी में सेवाक्रम - आज श्रीजी को नियम की गौ पूजन की पिछवाई, लाल चौफूली चूंदड़ी की लाल गोल-काछनी, सूथन और श्रीमस्तक पर हीरा की तिलक वाली टोपी धरायी जाती है.


बालभाव के कीर्तन गाये जाते हैं जिसमें गौ-पूजन को जाते बालक श्री श्यामसुंदर के श्रृंगार, सुन्दर वस्त्रों, आभूषणों एवं यशोदाजी के बड़े भाग्य का अद्भुत वर्णन किया गया है.

नीचे वर्णित कीर्तन को भावपूर्वक पढ़ें और सुन्दर शब्दों को समझने का प्रयास कर उनका आनंद लें.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


ठाडी लिये खिलावत कनियां l

प्रेममुदित मन गावत यशोदा हरि लीला मोहनियां ll 1 ll

काजर तिलक पीत तन झगुली कणित पाई पैजनिया l

हंसुली हेम हमेल बिराजत झर झटकन मनि मनिया ll 2 ll

हुलरावति हसि कंठ लगावत प्रीति रीति अति धनियां l

चुंबत मुख ‘रघुनाथदास’ बलि बड़ भागिन नंद रनियां ll 3 ll


साज – नन्दभवन की तिबारी में बछड़े सहित गाय का तिलक कर पूजन करती श्री यशोदा माँ, रोहिणी माँ तथा दूसरी ओर गायों के साथ ग्वाल-बालों के सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की चौफूली चुन्दडी के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन एवं गोल काछनी (मोर काछनी) धरायी जाती है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

कली, कस्तूरी एवं कमल माला आती है.

श्रीमस्तक हीरा की टोपी तिलक व फूंदा वाली और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं एवं स्वरुप की बायीं ओर मीना की चोटी धरायी जाती है.

पीले एवं श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में कमलछड़ी लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (लहरिया व एक सोना के) धराये जाते हैं.

पट लाल, गोटी मोर की व आरसी बावा साहब द्वारा पधराई कांच के कलात्मक काम की आती है.


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