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व्रज - भाद्रपद कृष्ण दशमी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - भाद्रपद कृष्ण दशमी

Friday, 14 August 2020


जन्माष्टमी का परचारगी श्रृंगार


विशेष – जन्माष्टमी के चार श्रृंगार चार यूथाधिपति स्वामिनीजी के भाव से होते हैं. प्रथम बधाई का श्रृंगार श्री यमुनाजी के भाव से, दूसरा जन्माष्टमी के दिन श्री राधिकाजी के भाव से, तीसरा नन्द महोत्सव का श्री चन्द्रावलीजी के भाव से और चौथा आज का श्री ललिताजी के भाव से होता है.


आज श्रीजी में सभी साज, वस्त्र एवं श्रृंगार पिछली कल की भांति ही होते हैं.

इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं. श्रीजी में अधिकांश बड़े उत्सवों के एक दिन बाद परचारगी श्रृंगार होता है.


परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी अगर उपस्थित हो तो श्रीजी के परचारक महाराज (चिरंजीवी श्री विशाल बावा) होते हैं.


कल नन्दोत्सव से अमावस्या तक प्रभु की बाल-लीला के श्रृंगार धराये जाते हैं एवं कीर्तनों में बाल-लीला के ही पद गाये जाते हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


नंद बधाई दीजे ग्वालिन l

तुम्हारे श्याम मनोहर आये गोकुल के प्रति पालन ll 1 ll

युवतिन बहु विधि भूषन दीजे विप्रन को गोदान l

गोकुल मंगल महामहोच्छव कमल नैन घनश्याम ll 2 ll

नाचत देव विमल गंधर्व मुनि गावत गीत रसाल l

‘परमानंद’ प्रभु तुम चिरजीयो नंद गोप के लाल ll 3 ll


साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफेद मखमल मढ़ी हुई होती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग के जामदानी के, रुपहली ज़री की तुईलैस से सुसज्जित चाकदार वागा एवं चोली धरायी जाती है. सूथन रेशमी सुनहरी छापा का होता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं. आज तकिया के खोल जड़ाऊ स्वर्ण काम के आते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का उत्सव का दो जोड़ (विगत कल चार जोड़) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे और माणक तथा स्वर्ण जड़ाव के आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर जड़ाव का शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है.

पीठिका के ऊपर हीरे का चौखटा धराया जाता है.

श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.पीले एवं श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.

पट एवं गोटी हीरे के आते हैं.

आरसी शृंगार में चार झाड़ की व राजभोग में स्वर्ण की बड़ी डाँडी की आती है.


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