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व्रज – भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी

Saturday, 22 August 2020


डंडा चौथ (गणेश चतुर्थी )


विशेष – आज गणेश चतुर्थी है. पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय में ‘गण’ का अर्थ समूह अथवा यूथ से एवं ‘पति’ का अर्थ गोपियों के नाथ श्री प्रभु से है.


गोपालदासजी ने वल्ल्भाख्यान में गाया है जिसका भावार्थ यह है कि “श्याम वर्ण के श्रीजी प्रभु गोपीजनों के समूह के मध्य अत्यंत शोभित हैं.

यह ‘गणपति’ रूप में प्रभु का स्वरुप कामदेव को भी मोहित करता है. गौरवर्ण गोपियाँ और मध्य में श्यामसुन्दर प्रभु.”


नाथद्वारा में कई वर्षों पहले यह परम्परा थी कि गणेश चतुर्थी के दिन नाथद्वारा के सभी स्कूलों और आश्रमों के बालक विविध वस्त्र श्रृंगार धारण कर के अपने गुरुजनों के साथ मंदिर के गोवर्धन पूजा के चौक में आते और डंके (डांडिया) से खेलते थे.

उन्हें गुड़धानी के लड्डू पूज्य श्री तिलकायत की ओर से दिए जाते थे. इसी भाव से आज डंके के खेल के चित्रांकन की पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है.

इसके अतिरिक्त अपने निज आवास मोतीमहल की छत पर खड़े हो कर तिलकायत गुड़धानी के लड्डू मंदिर पिछवाड़े में बड़ा-बाज़ार में खड़े नगरवासियों को देते थे जिन्हें सभी बड़े उत्साह से लेकर उल्हासित होते थे.


आज श्रीजी को नियम से लाल चूंदड़ी का धोरे-वाला सूथन, छज्जे वाली पाग और पटका का श्रृंगार धराया जाता है.


श्रीजी ने अपने सभी भक्तों को आश्रय दिया है, मान दिया है चाहे वो किसी भी धर्म से हो.


इसी भाव से आज ठाकुरजी अपनी अनन्य मुस्लिम भक्त ताज़बीबी की भावना से सूथन-पटका का श्रृंगार धराते हैं.


आज के दिन की एक और विशेषता है कि आज सूथन के साथ श्रीमस्तक पर छज्जे वाली पाग और जड़ाव का कतरा धराया जाता है.

यह श्रृंगार ताज़बीबी की विनती पर सर्वप्रथम भक्तकामना पूरक श्री गुसांईजी ने धराया था.


ताज़बीबी की ओर से यह श्रृंगार वर्ष में छह बार धराया जाता है. आज (गणेश चतुर्थी) के दिन यह श्रृंगार नियम से धराया जाता है यद्यपि इस श्रृंगार को धराने के अन्य पांच दिन निश्चित नहीं हैं परन्तु धराया अवश्य जाता है.


ताज़बीबी बादशाह अकबर की बेग़म, प्रभु की भक्त और श्री गुसांईजी की परम-भगवदीय सेवक थी. उन्होंने कई कीर्तनों की रचना भी की है और उनके सेव्य स्वरुप श्री ललितत्रिभंगी जी वर्तमान में गुजरात के पोरबंदर में श्री रणछोड़जी की हवेली में विराजित और सेव्य हैं.


सुनो दिल जानी, मेरे दिल की कहानी तुम,

तेरे दस्त ही बिकानी, बदनामी भी सहूंगी मैं।

देवपूजा ठानी मैं, नमाज हूं भुलानी,

तजे कलमा-कुरान साड़े गुननि गहूंगी मैं।।

नन्द के कुमार, कुरबान तेरी सुरत पै,

हूं तो मुगलानी, हिंदुआनी बन रहूंगी मैं।।


आज भोग में कोई विशेष सामग्री नहीं अरोगायी जाती है. केवल यदि कोई मनोरथी हो तो ठाकुरजी को सखड़ी अथवा अनसखड़ी में बाटी-चूरमा की सामग्री अरोगायी जा सकती है.


सायंकाल संध्या-आरती समय मंदिर के श्रीकृष्ण-भंडार और खर्च-भंडार में लौकिक रूप में भगवान गणेश के चित्रों का पूजन किया जाता है.


कल भाद्रपद शुक्ल पंचमी (रविवार, 23 अगस्त 2020) को राधाजी की प्रिय सखी चन्द्रावलीजी का उत्सव है. प्रभु को नील-पीत का पगा का अद्भुत श्रृंगार धराया जायेगा जिसका वर्णन कल की post में देने का प्रयास करूंगा.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


तू देख सुता वृषभान की l

मृगनयनी सुन्दर शोभानिधि अंग अंग अद्भुत ठानकी ll 1 ll

गौर बरन बहु कांति बदनकी शरद चंद उनमानकी l

विश्व मोहिनी बालदशामें कटि केसरी सुबंधानकी ll 2 ll

विधिकी सृष्टि न होई मानो यह बानिक औरे बानकी l

‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधर लायक व्रज प्रगटी जोरी समान की ll 3 ll


साज - श्रीजी में आज व्रजवासियों के समुदाय की डंकाखेल के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र - श्रीजी को आज लाल चोफुली चूंदड़ी के वस्त्र पर धोरे-वाला सूथन और पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सुवापंखी (तोते के पंख जैसे हल्के हरे) रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार - प्रभु को आज छेड़ान (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरे के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर लाल चूंदड़ी की छज्जे वाली पाग के ऊपर मोरशिखा, जमाव का कतरा लूम तथा तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में दो जोड़ी हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में तिमनिया वाला सिरपेंच धराया जाता हैं.

गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी और दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.

पट लाल एवं गोटी हरे मीना आती हैं.


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