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व्रज - भाद्रपद शुक्ल द्वादशी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

आप सभी को वामन जयंती की अनेकानेक बधाई


व्रज - भाद्रपद शुक्ल द्वादशी


रविवार, 30.8.2020


वामन जयंती


विशेष - आज वामन जयंती है.


पुष्टिमार्ग में भगवान विष्णु के सभी अवतारों में से चार (श्री कृष्ण, श्री राम, श्री नृसिंह एवं श्री वामन) को मान्यता दी है इस कारण इन चारों अवतारों के जन्म दिवस को जयंती के रूप में मनाया जाता है.


भगवान विष्णु के दस अवतारों में ये चारों अवतार प्रभु ने निरूसाधन भक्तों पर कृपा हेतु लिए थे अतः इनकी लीला पुष्टिलीला हैं. पुष्टि का सामान्य अर्थ कृपा भी है.


इन चारों जयंतियों को उपवास व फलाहार किया जाता है. जयंती उपवास की यह भावना है कि जब प्रभु जन्म लें अथवा हम प्रभु के समक्ष जाएँ तब तन, मन, वचन एवं कर्म से शुद्ध हों. प्राचीन हिन्दू वेदों में भी कहा गया है कि उपवास से तन, मन, वचन एवं कर्म की शुद्धि होती है.


श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.


सभी समय यमुनाजल की झारीजी आती है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) आरती थाली में की जाती है.

गेंद, चैगान, दीवाला आदि सभी सोने के आते हैं.


मंगला दर्शन के पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.


भाद्रपद कृष्ण पंचमी को केसर से रंगे गये वस्त्र जन्माष्टमी, राधाष्टमी और वामन द्वादशी के उत्सवों धराये जाते हैं.


आज श्रीजी को नियम का केसरी धोती-पटका का श्रृंगार धराया जाता है. जन्माष्टमी वाली लाल बड़े लप्पा की पिछवाई धरायी जाती है.


बहुत अद्भुत बात है कि आज यह श्रृंगार धराया प्रभु का स्वरुप अन्य दिनों की तुलना में कुछ छोटा प्रतीत होता है अर्थात दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि श्रीजी आज वामन रूप में अपने भक्तों को दर्शन देते हैं.


प्रभु को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में कूर (कसार) के चाशनी वाले बड़े गुंजा व दूधघर में सिद्ध केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.


वामन जयंती के कारण आज श्रीजी में दो राजभोग दर्शन होते हैं.

प्रथम राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में दहीभात आरोगाये जाते हैं.


प्रथम राजभोग के भोग सरे उपरांत श्रीजी के संग विराजित श्री सालिग्रामजी को पंचामृत स्नान कराया जाता है. दर्शन के पश्चात उनको अभ्यंग, तिलक-अक्षत किये जाते हैं, तुलसी समर्पित की जाती है और श्रीजी के समक्ष उत्सव भोग रखे जाते हैं.


दूसरे राजभोग में उत्सव भोग में दूधघर में सिद्ध पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, केशरयुक्त बासोंदी, जीरा युक्त, दही, शीतल, विविध फल, तले हुए बीज-चालनी के सूखे मेवे और विविध प्रकार के संदाना (आचार) अरोगाये जाते हैं.

सखड़ी में केसरी पेठा व मीठी सेव अरोगें.


सायं भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर बीज-चालनी के सूखे मेवे अरोगाये जाते हैं.


राजभोग दर्शन -


कीर्तन - (राग: सारंग)


प्रगटे श्रीवामन अवतार ।

निरख अदित मुख करत प्रशंसा जगजीवन आधार ।।1।।

तनघनश्याम पीतपट राजत शोभित है भुज चार ।

कुंडल मुकुट कंठ कौस्तुभ मणि उर भृगुरेखा सार ।।2।।

देखि वदन आनंदित सुर मुनि जय जय करे निगम उच्चार ।

‘गोविंद’प्रभु बलिवामन व्है कैं ठाड़े बलि के द्वार ।।3।।


साज - श्रीजी में आज जन्माष्टमी वाली उत्सव की कमल के काम वाली लाल सुनहरी बड़े लप्पा वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचैकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र - श्रीजी को आज केसरी मलमल पर रुपहली जरी की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित धोती एवं गाती का उपरना धराया जाता है. प्रभु के यश विस्तार भाव से ठाड़े वस्त्र सफेद धराये जाते हैं.


श्रृंगार - आज प्रभु को मध्य का (घुटनों तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा - हीरे, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.


श्रीमस्तक पर केसरी कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.


श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. रंग-बिरंगी पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.


श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं


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