top of page
Search

व्रज – भाद्रपद शुक्ल नवमी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – भाद्रपद शुक्ल नवमी

Thursday, 27 August 2020


व्रज में रतन राधिका गोरी ।

हर लीनी वृषभान भवनतें नंद सुवन की जोरी ।।१।।

ग्रथित कुसुम अलकावली की छवि अरु सुदेश करडोरी ।

पिय भुज कन्ध धरें यों राजत ज्यों दामिनी घनसोंरी ।।२।।

कालिंदी तट कोलाहल सघन कुंजवन खोरी ।

कृष्णदास प्रभु गिरिधर नागर नागरी नवल किशोरी ।।३।।


राधाष्टमी का परचारगी श्रृंगार


विशेष – आज श्रीजी को राधाष्टमी का परचारगी श्रृंगार धराया जायेगा. परचारगी श्रृंगार में श्रीजी में सभी साज, वस्त्र एवं श्रृंगार पिछली कल की भांति ही होते हैं, केवल पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे-मोती के जड़ाव का चौखटा नहीं धराया जाता है और आभरण कुछ कम होते हैं.

गेंद, चौगान, दीवाला आदि सभी सोने के आते हैं.आज तकिया के खोल एवं साज जड़ाऊ स्वर्ण काम के आते हैं.


दिन में सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) आरती थाली में की जाती है.


श्रीजी में सभी बड़े उत्सवों के एक दिन बाद परचारगी श्रृंगार होता है.


परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी चिरंजीवी श्री विशाल बावा होते हैं. यदि वे उपस्थित हों तो श्रीजी के श्रृंगारी वही होते हैं.


जन्माष्टमी के चार श्रृंगार चार यूथाधिपति स्वामिनीजी के भाव से होते हैं परन्तु श्री राधिकाजी प्रभु की अर्धांगिनी हैं अतः इस भाव से राधाष्टमी के श्रृंगार दो बार ही होते हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


मैं देखी सुता वृषभान की l

जननी संग आई व्रज रावरी शोभा रूप निधान की ll 1 ll

नेंक सुभायते भृकुटी टेढ़ी बेनी सरस कमानकी l

नैन कटाक्ष रहत चितवतही चितवनि निपट अयानकी ll 2 ll

पग जेहरी कंचन रोचनसी तनकसी पोहोंची पानकी l

खगवारी गले द्वै लर मोती तनक तरुवनी कानकी ll 3 ll

लै बैठी हंसि गोद जसोदा मनमें ऐसी बानकी l

‘सूरदास’ प्रभु मदनमोहन हित जोरी सहज समान की ll 4 ll


साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली (जन्माष्टमी वाली) पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफेद मखमल मढ़ी हुई होती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की जामदानी की रुपहली रुपहली फूल वाली किनारी से सुसज्जित चाकदार एवं चोली धरायी जाती है. सूथन रेशम का लाल रंग का सुनहरी छापा का होता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हीरा एवं माणक भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा- हीरे, मोती, माणक तथा स्वर्ण जड़ाव के आभरण धराये जाते हैं.


श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. मुखारविंद पर चंदन से कपोलपत्र किये जाते हैं.

नीचे आठ पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार एवं माला धराए जाते हैं.

श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि मालाजी धरायी जाती है.

पीले एवं श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.

पट एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आते हैं.

आरसी शृंगार में चार झाड़ की व राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.


0 views0 comments

Comments


© 2020 by Pushti Saaj Shringar.

bottom of page