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व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी

Sunday, 27 December 2020


श्रीजी में सखड़ी का तृतीय (प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर का पहला) सखड़ी मंगलभोग


विशेष – श्रीजी में आज तृतीय मंगलभोग है. मैंने पूर्व में बताया था कि वैसे तो श्रीजी को नित्य ही मंगलभोग अरोगाया जाता है परन्तु गोपमास व धनुर्मास में सखड़ी के चार मंगलभोग विशेष रूप से अरोगाये जाते हैं.


मंगलभोग का भाव यह है कि शीतकाल में बालकों को पौष्टिक खाद्य खिलाये जावें तो बालक स्वस्थ व पुष्ट रहते हैं इसी भाव से ठाकुरजी को अरोगाये जाते हैं.

इनकी यह विशेषता है कि इन चारों मंगलभोग में सखड़ी की सामग्री भी अरोगायी जाती है.

एक और विशेषता है कि ये सामग्रियां श्रीजी में सिद्ध नहीं होती. दो मंगलभोग श्री नवनीतप्रियाजी के घर के एवं अन्य दो द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर के होते हैं. अर्थात इन चारों दिवस सम्बंधित घर से श्रीजी के भोग हेतु सामग्री मंगलभोग में आती है.


आज द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर का पहला सखड़ी का मंगलभोग है. मंगलभोग में अरोगायी जाने वाली सखड़ी की सामग्री सिद्ध हो कर नहीं आती क्योंकि दोनों मंदिरों के मध्य आम रास्ता पड़ता है और खुले मार्ग में सखड़ी सामग्री का परिवहन नहीं किया जाता अतः श्री विट्ठलनाथजी के घर से कच्ची सामग्री आती है और सेवक श्रीजी के सखड़ी रसोईघर में विविध सामग्रियां सिद्ध कर प्रभु को अरोगते हैं.

आज प्रभु को खिरबड़ा एवं अन्य सखड़ी की सामग्री तृतीय सखड़ी के मंगलभोग में आरोगायी जायेगी.


श्रृंगार से राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिवसों की तुलना में थोड़ा जल्दी होता है.


आज द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर में नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गिरधरलालजी का उत्सव है अतः प्राचीन परंपरानुसार श्रीजी प्रभु को धराये जाने वाले वस्त्र द्वितीय गृह से सिद्ध हो कर आते हैं.

वस्त्रों के साथ वहाँ से विशेष रूप से अनसखड़ी में सिद्ध बूंदी के लड्डुओं की छाब श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु आती है.


वर्षभर में लगभग सौलह बार द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु के घर से वस्त्र सिद्ध होकर श्रीजी में पधारते हैं.


आज श्रीजी में नियम के केसरी चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर केसरी छज्जेदार पाग के ऊपर नागफणी का कतरा धराया जाता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : आसावरी)


प्रीत बंधी श्रीवल्लभ पदसों और न मन में आवे हो ।

पढ़ पुरान षट दरशन नीके जो कछु कोउ बतावे हो ।।१।।

जबते अंगीकार कियोहे तबते न अन्य सुहावे हो ।

पाय महारस कोन मूढ़मति जित तित चित भटकावे हो ।।२।।

जाके भाग्य फल या कलिमे शरण सोई जन आवेहो ।

नन्द नंदन को निज सेवक व्हे द्रढ़कर बांह गहावे हो ।।३।।

जिन कोउ करो भूलमन शंका निश्चय करी श्रुति गावे हो ।

"रसिक" सदा फलरूप जानके ले उछंग हुलरावे हो ।।४।।


साज – श्रीजी में आज केसरी रंग की साटन (Satin) की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की साटन (Satin) का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, नागफणी (जमाव) का कतरा व लूम तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में कमल माला एवं श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.

पट केसरी व गोटी मीना की आती है.


संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.


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