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व्रज - वैशाख शुक्ल षष्ठी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - वैशाख शुक्ल षष्ठी

Tuesday, 18 May 2021


छैल जो छबीला, सब रंग में रंगीला

बड़ा चित्त का अड़ीला, कहूं देवतों से न्यारा है।

माल गले सोहै, नाक-मोती सेत जो है कान,

कुण्डल मन मोहै, लाल मुकुट सिर धारा है।

दुष्टजन मारे, सब संत जो उबारे ताज,

चित्त में निहारे प्रन, प्रीति करन वारा है।

नन्दजू का प्यारा, जिन कंस को पछारा,

वह वृन्दावन वारा, कृष्ण साहेब हमारा है।।


आज ताज़बीबी के अन्नय भाव के सूथन, फेंटा और पटका के श्रृंगार


विशेष – आज प्रभु को सूथन, फेंटा और पटका का श्रृंगार धराया जाता है. यद्यपि आज का दिन इस श्रृंगार के लिए नियत नहीं परन्तु सामान्यतया आज के दिन ही धराया जाता है.


श्रीजी ने अपने सभी भक्तों को आश्रय दिया है, मान दिया है चाहे वो किसी भी धर्म से हो.


इसी भाव से आज ठाकुरजी अपनी अनन्य मुस्लिम भक्त ताज़बीबी की भावना से सूथन-पटका का श्रृंगार धराते हैं. यह श्रृंगार ताज़बीबी की विनती पर सर्वप्रथम भक्तकामना पूरक श्री गुसांईजी ने धराया था.


ताज़बीबी की ओर से यह श्रृंगार वर्ष में छह बार धराया जाता है. भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी (गणेश चतुर्थी) के दिन यह श्रृंगार नियम से धराया जाता है यद्यपि इस श्रृंगार को धराने के अन्य पांच दिन निश्चित नहीं हैं.


ताज़बीबी बादशाह अकबर की बेग़म, प्रभु की भक्त और श्री गुसांई जी की परम-भगवदीय सेवक थी. उन्होंने कई कीर्तनों की रचना भी की है और उनके सेव्य स्वरुप श्री ललितत्रिभंगी जी वर्तमान में गुजरात के पोरबंदर में श्री रणछोड़जी की हवेली में विराजित हैं.


मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को फिरोज़ी धोरा के वस्त्र, पाग धराये गए हैं व ठाडे वस्त्र गुलाबी हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


बन्यो वागौ वामना चंदनको l

चंपकली की पाग बनाई भाल तिलक बन्यो वंदन को ll 1 ll

चोली की छबि कहत न आवे काछोटा मनफंदनको l

‘परमानंद’ आनंद तहाँ नित मुख निरखत नंद नंदनको ll 2 ll


साज – आज श्रीजी में फिरोज़ी धोरा के रंग की मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को फिरोज़ी धोरा के रंग की मलमल का धोरे (थोड़े-थोड़े अंतर से किनारी के धोरे) वाला सूथन और राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य (घुटने तक) का उष्णकालीन छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है.

मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर फिरोज़ी धोरा के रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, चंद्रिका, कतरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.

श्रीकर्ण में लोलकबिन्दी लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, गंगा जमुनी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट उष्णकाल का व गोटी बाघ-बकरी की आती है.


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