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व्रज – अश्विन कृष्ण सप्तमी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – अश्विन कृष्ण सप्तमी

Tuesday, 24 September 2024


स्याम पीला लहरिया का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर दुमाला पर कलगा (भीमसेनी क़तरा) के शृंगार


राजभोग दर्शन -


कीर्तन – (राग : सारंग)


यहाँ अब काहे को दान देख्यो न सुन्यो कहुं कान l

ऐसे ओट पाऊ उठि आओ मोहनजु दूध दही लीयो चाहे मेरे जान ll 1 ll

खिरक दुहाय गोरस लिए जात अपने भवन तापर ईन ऐसी ठानी आनकी आन l

‘गोविंद’ प्रभु सो कहेत व्रजसुंदरी, चलो रानी जसोदा आगे नातर सुधै देहो जान ll 2 ll


साज - श्रीजी में आज स्याम पीला लहरियाँ की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया सफेद एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी में आज स्याम पीला लहरियाँ का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के होते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटनों तक) श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर स्याम पीला लहरियाँ के दुमाला के ऊपर सिरपैंच, कल्गा (भीमसेनी कतरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.


पट स्याम व गोटी बाघ-बकरी की आती है.

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