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व्रज - अश्विन शुक्ल द्वितीया

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - अश्विन शुक्ल द्वितीया

Friday, 04 October 2024


द्वितीय विलास कियौ श्यामाजू, खेल

समस्या कीनी ।

ताकी मुख्य सखी ललिताजू, आनंद महारस भीनी ।। १ ।।

चली संकेत बिहार करन बलि, पूजा साजि संपूरन ।

बहु उपहार भोग पायस लै, बाँह हलावत मूर ।।२।।

मंदिर देवी गान करत यश, आय मिले गिरिधारी ।

मन कौ भायौ भयौ सबन कौ, काम वेदना टारी ।।३।।

स्यामा कौ शृंगार श्याम कौ,

ललिता नीवी खोली ।

लीला निरखत दास रसिकजन, श्रीमुख

स्यामा बोली ।। ४ ।।


द्वितीय विलास के अंतर्गत सेहरा के शृंगार,


नवविलास के अंतर्गत द्वितीय विलास के आधार पर आज द्वितीय विलास की भावना का स्थल व्रज में संकेत वन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी श्री ललिताजी है और सामग्री खीर की है. यद्यपि यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती परन्तु कई गृहों में नवविलास में अरोगायी जाती है.


आज श्रीजी प्रभु को नियम के पीले छापा के वस्त्र, पीला खूंट का दुमाला के ऊपर हीरो का सेहरा और आभरण में विशेष पन्ना के कुंडल व पन्ना की जोड़ी धरायी जाती है.

लगभग 2 माह 12 दिन पश्चात प्रभु आज पुनः सेहरा का श्रृंगार धरायेंगे.

पूर्व में श्रावण कृष्ण षष्ठी के दिन भी संकेत वन में प्रभु सेहरा का श्रृंगार धरा कर श्रीस्वामिनीजी के संग झूले थे.

आज भी प्रभु संकेत वन में ही स्वामिनीजी संग मंडप में विराजे हैं.


प्रभु को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से बाबर (सूखे घेवर के ऊपर ठंडा घी और मिश्री का बूरा डाल कर बनाया खाद्य) का भोग अरोगाया जाता है.


राजभोग में सखड़ी भोग में खंडरा प्रकार अरोगाये जाते हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


दिन दुल्है मेरो कुंवर कन्हैया l

नित उठ सखा सिंगार बनावत नितही आरती उतारत मैया ll 1 ll

नित उठ आँगन चंदन लिपावे नित ही मोतिन चौक पुरैया l

नित ही मंगल कलश धरावे नित ही बंधनवार बंधैया ll 2 ll

नित उठ व्याह गीत मंगलध्वनि नित सुरनरमुनि वेद पढ़ैया l

नित नित होत आनंद वारनिधि नित ही ‘गदाधर’ लेत बलैया ll 3 ll


साज – श्रीजी में आज संकेत वन में विवाह लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की छापा की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी वाली धोती और इसी प्रकार का राजशाही पटका धराया जाता है. आज के वस्त्र विशिष्ठता लिए हुए है. आज विशेष रूप से धोती के ऊपर पीले रंग के छापा का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी वाला खुलेबंद के चाकदार वागा एवं चोली भी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है.पन्ना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर पीले रंग का छापा का खूंट का दुमाला के ऊपर हीरो का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. दायीं ओर सेहरे की मोती की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में पन्ना के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

कस्तूरी कली एवं कमल माला धराई जाती हैं.

श्वेत रंग के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.


पट लाल व गोटी राग रांग की आती हैं.

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