top of page
Search

व्रज – आश्विन कृष्ण एकादशी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – आश्विन कृष्ण एकादशी

Saturday, 28 September 2024


प्रीतम प्रीत ही तें पैये ।

यद्यपि रूप गुण शील

सुघरता ईन बातन न रीजैयें ।।१।।

सतकुल जन्म कर्म शुभ लच्छन

वेद पुरान पढ़ैये ।

गोविंद प्रभु बिना स्नेह सुवालों

रसना कहाजु नचैये ।।२।।


भावार्थ- विशुद्ध प्रेम ही अन्त:करण को पवित्र करता है. परम प्रीति ही भक्ति है. प्रभु प्रेम द्वारा ही वश में होते हैं.

रूप, गुण, शील, सुघड़ता इन सब से प्रभु प्रसन्न नहीं होते हैं. अच्छे कुल में जन्म होना, कर्म, शुभ लक्षण, वेद पुराणों का ज्ञान यह सब हो किन्तु प्रेम नहीं हो तो सब व्यर्थ है.


महादान एकादशी


विशेष – आज इंदिरा एकादशी है. इसे पुष्टिमार्ग में महादान एकादशी भी कहा जाता है.


आज दान का नियम का छटा मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.


दान के दिनों के मुकुट काछनी के श्रृंगार की कुछ और विशेषताएँ भी है.


इन दिनों में जब भी मुकुट धराया जावे तब मुकुट को एक वस्त्र से बांधा जाता है जिससे जब प्रभु मटकी फोड़ने कूदें तब मुकुट गिरे नहीं.

इसके अतिरिक्त दान के दिनों में मुकुट काछनी के श्रृंगार में स्वरुप के बायीं ओर चोटी (शिखा) नहीं धरायी जाती. इसके पीछे यह भाव है कि यदि चोटी (शिखा) रही तो प्रभु जब मटकी फोड़कर भाग रहे हों तब गोपियाँ उनकी चोटी (शिखा) पकड़ सकती हैं और प्रभु भाग नहीं पाएंगे.


Post में प्रदर्शित चित्र में द्रश्य नहीं हैं परन्तु आज प्रभु के स्वरुप से भी लम्बी एक लकुटी (छड़ी) प्रभु के पीठिका के सहारे खड़ी धरी जाती है जिसका भाव यह है कि भारी श्रृंगार के रहते प्रभु उछल के मटकी नहीं फोड़ पाएंगे अतः लम्बी वेत्रजी (छड़ी) पास में होगी होगी तो खड़े-खड़े ही प्रभु मटकी फोड़ देंगे.


आज प्रभु द्वारा शाकघर का महादान अंगीकार किया जाता है.


गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को शाकघर और दूधघर में विशेष रूप से सिद्ध किये गये दूध, दही, केशरिया दही, श्रीखंड, केशरी बासोंदी, मलाई बासोंदी, गुलाब-जामुन, छाछ, खट्टा-मीठा दही के बटेरा आदि अरोगाये जाते हैं.

दान के अन्य दिनों के अपेक्षा आज प्रभु को कई गुना अधिक हांडियां अरोगायी जाती है.


आज व्रज के गोवर्धन के दान का भाव है. कीर्तनों में श्री हरिरायजी रचित बड़ी दानलीला गायी जाती है.


श्रीजी को एकादशी फलाहार के रूप में कोई विशेष भोग नहीं लगाया जाता, केवल संध्या आरती में प्रतिदिन अरोगायी जाने वाली खोवा (मिश्री-मावे का चूरा) एवं मलाई (रबड़ी) को मुखिया, भीतरिया आदि भीतर के सेवकों को एकादशी फलाहार के रूप में वितरित किया जाता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


कृपा अवलोकनि दान दै री महादानी श्रीवृषभान कुमारी l

त्रिषित लोचन चकोर मेरे तुव वदन इंदु किरन पान दैरी ll 1 ll

सबविधि सुधर सुजान सुन्दरि सुनि विनति तू कान दैरी l

‘गोविंद’ प्रभु पिय चरण परस कह्यौ याचक को तू मान दैरी ll 2 ll


साज – आज प्रातः श्रीजी में गहरवन में दूध-दही बेचने जाती गोपियों के पास से दान मांगते एवं दूध-दही लूटते श्री ठाकुरजी एवं सखा जनों के सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है.

गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र - श्रीजी को आज केसरी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन व केसरी काछनी दूसरी काछनी लाल तथा केसरी रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद भातवार के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा एवं जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर हीरा एवं स्वर्ण का जड़ाऊ मीनाकारी वाला मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

कस्तूरी कली एवं कमल माला धराई जाती हैं.

पीले एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.


पट लाल व गोटी मोर की आती है.

2 views0 comments

Comments


© 2020 by Pushti Saaj Shringar.

bottom of page