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व्रज – आश्विन कृष्ण द्वादशी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – आश्विन कृष्ण द्वादशी

Sunday, 29 September 2024


“श्रीवल्लभप्रतिनिधिं तेजेराशिं दयार्णवम् l

गुणातीतं गुणनिधिं श्रीगोपीनाथमाश्रये ll”


भावार्थ - श्रीवल्लभ के प्रतिनिधि स्वरुप, तेज के भंडाररूप, दया के सागर, सत्वादि गुणों के बल पर सत्ता भोगने वाले, सद्गुणों के भंडाररूप ऐसे श्री गोपीनाथजी का मैं आश्रय करता हूँ.


(दशदिंगत विजयी पुरुषोत्तमजी महाराज द्वारा अपने ग्रन्थ ‘अणुभाष्य प्रकाश’ में की गई आपकी स्तुति)


नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोपीनाथजी का उत्सव


विशेष – आज श्री महाप्रभुजी के ज्येष्ठ पुत्र गोपीनाथजी का उत्सव है.


श्रीजी को दान की हांडियों के अतिरिक्त गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है.


संध्या आरती पश्चात चीर घाट की सांझी मांडी जाती है.


नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोपीनाथजी


श्री महाप्रभुजी के ज्येष्ठ पुत्र श्री गोपीनाथजी का प्राकट्य विक्रमाब्द 1567 में आज के दिन प्रयाग (इलाहबाद) के निकट अडेल में हुआ था. उनके जन्म पर सभी को अपार आनंद अनुभव हुआ अतः महाप्रभुजी ने ब्राह्मणों, याचकों, गरीबों को खूब दान-दक्षिणा दी थी.


7 वर्ष की आयु में आपका यज्ञोपवीत संस्कार कर स्वयं महाप्रभुजी ने आपको विद्याभ्यास प्रारंभ कराया. आप पर महाप्रभुजी की विद्वता एवं अनन्य भक्ति का बहुत प्रभाव पड़ा.


महाप्रभुजी प्रतिदिन श्रीमद्भागवत का परायण करते. उन्हें देखकर आपने भी बाल्यावस्था में ही श्रीमद्भागवत का परायण करने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करने का नियम लिया जिसके परिणामस्वरूप कभी-कभी वे तीन-चार दिवस बिना भोजन के भागवत परायण करते रहते.


इससे व्यथित आपकी माताश्री को देख श्री महाप्रभुजी ने श्रीमद्भागवत साररूप ‘श्री पुरुषोत्तम सहस्त्रनाम’ नामक ग्रन्थ की रचना की एवं गोपीनाथजी को ग्रन्थ दे कर आज्ञा की कि तुम प्रतिदिन इस ग्रन्थ का पाठ करो एवं इससे श्रीमदभागवत के पाठ का फल मिलेगा.


श्री महाप्रभुजी ने आसुरव्यामोह लीला की तब आपकी आयु 19 वर्ष थी. इस अल्पायु में आपको आचार्य पद प्राप्त हुआ.


आपकी बहूजी का नाम पयाम्मा जी था. आपको पुरुषोत्तमजी नाम के एक पुत्र, लक्ष्मी और सत्यभामा नाम की दो पुत्रियाँ हुई.


आप शांत एवं गंभीर प्रवृति के विद्वान थे. आपकी रूचि ग्रंथों के अभ्यास एवं तीर्थयात्रा में विशेष रूप से थी. आप कई बार जगन्नाथपुरी एवं द्वारका की यात्रा को पधारते थे.


एक बार आपश्री जगन्नाथपुरी की यात्रा को पधारे तब आपको एक लाख रुपये की धनराशि चरण भेंट में प्राप्त हुई. आपने इस राशी से सोने-चांदी के बर्तन एवं सेवा में आवश्यक सामग्रियां क्रय कर प्रभु को अर्पण कर दिए. तब से प्रभु का वैभव दिनोंदिन बढ़ने लगा.


आपके द्वारा रचित कई ग्रंथों में आज ‘साधन-दीपिका’ नाम का ग्रन्थ प्राप्त है. जिसमें भक्ति की साधना का स्वरुप सेवाविधि बतायी गयी है.


आप केवल 31 वर्ष भूतल पर विराजित रहे और जगन्नाथपुरी में ही नित्यलीला में पधारे. ऐसा कहा जाता है कि आप सदेह श्री जगन्नाथ भगवान के स्वरुप में अंतर्ध्यान हो गये थे.


श्री गोपीनाथजी त्याग की मूर्ति, वैराग्यपूर्ण हृदय वाले भगवद सेवा परायण, समग्र परिवार को सुख देने वाले, एवं शिष्टबद्ध जीवन व्यतीत करने वाले थे. आपके बारे में श्री गुसांईजी ने कहा है :


“यदुग्रहतो जंतु: सर्व दु:खातिगोभवेत l

तमहं सर्वदा वंदे श्रीमद्वल्लभनंदनम् ll”


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


केसरकी धोती पहेरे केसरी उपरना ओढ़े तिलक मुद्रा धर बैठे श्री लक्ष्मण भट्ट धाम l

जन्म धोस जान जान अद्भुत रूचि मान मान नखशिखकी शोभा ऊपर वारों कोटि काम ll 1 ll

सुन्दरताई निकाई तेज प्रताप अतुल ताई आसपास युवतीजन करत है गुणगान l

‘पद्मनाभ’ प्रभु विलोक गिरिवरधर वागधीस यह अवसर जे हुते ते महाभाग्यवान ll 2 ll


साज – आज श्रीजी में हल्के आसमानी रंगी की छापा वाली तथा लाल एवं रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल की सुनहरी ज़री की तुईलैस की ज़री की किनारी से सुसज्जित धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.पन्ना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर लाल रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

कस्तूरी कली आदि मालाए धराई जाती हैं.

श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.

पट लाल एवं गोटी श्याम मीना की आती हैं.


आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

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