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व्रज – आश्विन शुक्ल अष्टमी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – आश्विन शुक्ल अष्टमी

Friday, 11 October 2024


आठों विलास कियौ श्यामाजू,

शांतनकुंड प्रवेशजू ।

उनकी मुख्य भामा सारंगी,

खेलत जनित आवेशजू ।।१।।

सूरज मंदिर पूजन कर मेवा,

सामग्री भोगधरी ।

आनँद भरी चली व्रज ललना,

क्रीडन बनकों उमगि भरी ।।२।।

भद्रबन गमन कियौ बनदेवी,,

पूजन चंदनबंदन लीन ।

भोग स्वच्छ फेनी एनी,

सब अंबर अभरनचीने ।३।।

गावत आवत भावत चितवन,

नंदलालके रसमाती ।

कृष्णकला सुंदर मंदिरमें,

युवती भयी सुहाती।।४।।

देखी स्वरूप ठगी ललनाते,

चकचोंधीसी लाई ।

अँचवत दृगन अघात "दास रसिक,"

विहारीन राई ।।५।।


विशेष – आज दुर्गाष्टमी है. नवविलास के अंतर्गत पुष्टिमार्ग में आज अष्टम विलास का लीलास्थल शांतन कुंड है.

आज के मनोरथ की मुख्य सखी भामाजी (भावनी जी) हैं और सामग्री चंद्रकला (सूतरफेणी) है. यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है.


श्रीजी को आज गोपीवल्लभ में डेढ़ बड़ी आरोगाया जाता हैं.

आज श्रीजी को सखड़ी में अठपुड़ा प्रकार आरोगाया जाता हैं.


नवरात्रि में मर्यादामार्गीय शक्ति पूजन के मूल में शिव है जबकि पुष्टिमार्गीय शक्ति की लीला प्रकार के मूल में स्वयं नंदनंदन प्रभु श्रीकृष्ण है l


‘तिहिंछिन प्रभुजी आप पधारे कोटिक मन्मथ मोहै l’


आज श्रीजी की पिछवाई के सुन्दर चित्रांकन में गोपियाँ समूह में भद्रवन में वनदेवी के पूजन हेतु जा रही हैं किन्तु चिंतन एवं गुणगान नंदनंदन श्रीकृष्ण का ही कर रही हैं.


आज प्रभु को नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.


रासपंचाध्यायी के आधार पर श्रीजी को शरद पूर्णिमा रास महोत्सव के मुकुट के पांच श्रृंगार धराये जाते हैं जिनका वर्णन मैं आगे भी दूंगा. आज महारास की सेवा का प्रथम मुकुट का श्रृंगार है जिसमें प्रभु प्रथम वेणुनाद करते हैं, गोपियाँ प्रश्न करती हैं, उपदेश तथा प्रणय गीत होते हैं जिससे रास के भाव से आती गोपीजनों के चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है.


प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. इस उपरांत निकुँज लीला में भी मुकुट धराया जाता है. मुकुट उद्बोधक है एवं भक्ति का उद्बोधन कराता है.


अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.


जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है.


जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.


जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है.


दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


नागरी नागरसो मिल गावत रासमें सारंग राग जम्यो l

तान बंधान तीन मूर्छना देखत वैभव काम कम्यौ ll 1 ll

अद्भुत अवधि कहां लगी बरनौ मोहन मूरति वदन रम्यो l

भजि ‘कृष्णदास’ थक्ति नभ उडुपति गिरिधर कौतुक दर्प दम्यो ll 2 ll


साज – श्रीजी में आज वेणुनाद सुन कर दोनों दिशाओं से प्रभु की ओर आते गोपियों के समूह की, रास के प्रारंभ के भाव की भद्रवन की लीला के अद्भुत चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज अमरसी छापा के

रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, एवं काछनी धरायी जाती है. चोली श्याम सुतरु की धरायी जाती हैं. अमरसी रंग के छापा का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत छापा के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का श्रृंगार धराया जाता है. हीरे, मोती, एवं सोने के आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर डाख का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

आज अलख (घुंघराले केश) धराये जाते हैं.

कली, कस्तूरी एवं कमल माला धरायी जाति हैं.रंग-बिरंगी पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.


पट अमरसी एवं गोटी नाचते मोर की आती हैं.

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