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व्रज – आश्विन शुक्ल चतुर्थी (दुहरा मनोरथ)

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – आश्विन शुक्ल चतुर्थी (दुहरा मनोरथ)

Monday, 07 October 2024


चौथौ विलास कियौ श्यामाजू,

परासौली बन माँई ।

ताके वृक्षलता द्रुमवेली,

तन पुलकित आनंद न समाईं ।।१।।

चंद्रभगा मुख्य यथावलि,

अपनी सखी सब न्यौति बुलाई ।

खंडमंडा,जलेबी लडुआ,

प्रत्येक अंगकौ भाव जनाई ।।२।।

साज कियौ पूजन देविकौ,

बहू उपहार भेट लै आई ।

खेलन चली बनी तिहिंशोभा,

ज्यों धनमें चपला चमकाई ।।३।।

पोहोंची जाय दरस देवी तब है,

गये श्यामकिशोर कन्हाई ।

मनकौ चीत्यौ भयौ लालनकौ,

हास बिलास करत किलकाई ।।४।।

श्यामाश्याम भुज भर भेटे,

तृण तोरत,और लेत बलाई ।

कही न जाय शोभा ता सुख की.

कुंजन दुरे रसिक निधिपाई ।।५।।


विशेष – आज चतुर्थ विलास का लीलास्थल परासोली है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी चंद्रभागाजी हैं और सामग्री खरमंडा, जलेबी और लड्डू हैं यद्यपि ये भोगक्रम श्रीजी में नहीं होता परन्तु कई अन्य गृहों में यह सेवाक्रम होता है.


ठाकुरजी को आज केसरी डोरिया के घेरदारवस्त्र भी दोहरी किनारी वाले धराये जाते हैं. प्रभु समक्ष वेणुजी, वैत्रजी भी दो धराये जाते हैं.


कीर्तन भी दोगुने होते हैं.आज पूरे दिन झांझ (एक प्रकार का वाध्य) बजे

ग्वाल समय होने वाले धूप दीप भी दो बार होते हैं.

मंगलाभोग से ले कर संध्या आरती के पश्चात धैया (दूध) अरोगे तब तक सभी ‘नित्य-नियम के भोग’ भी दोहरा (दोगुना) अरोगाये जाते हैं.


शयन भोग में पुनः भोग का क्रम पूर्ववत हो जाता है. केवल शयन की बासोंदी दोहरी अरोगायी जाती है.


श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से नवविलास के भाव से केशर की चाशनी युक्त घेवर व प्राकट्योत्सव के भाव से केशर-युक्त जलेबी के टूक और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की दो हांडियां अरोगायी जाती है.


राजभोग समय अनसखड़ी में दाख (किशमिश) और दूसरा केले का रायता अरोगाया जाता है.


राजभोग में नियम का सभी सखड़ी महाप्रसाद भी दोहरा (दोगुना) अरोगाया जाता है जिसमें विशेष मीठा में बूंदी प्रकार आरोगाया जाता हैं.


आज की एक अति विशिष्ट प्राचीन परम्परा है कि आज के द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी व तृतीय गृहाधीश्वर श्री द्वारकाधीश प्रभु को धराये जाने वाले केसर से रंगे डोरिया के वस्त्र भी श्रीजी से सिद्ध होकर जाते हैं. इसके साथ प्रभु के अरोगवे की सामग्री भी पधारती है.

प्रधानगृह, द्वितीय गृह और तृतीय गृह में पधारने वाले ये वस्त्र विगत आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को केसर से रंगे जाते हैं.

वर्ष में केवल दो बार श्रीजी से इन दोनों गृहों के वस्त्र पधारते हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


सदा व्रजहीमें करत विहार l

तबके गोप भेख वपु धार्यो अब द्विजवर अवतार ll 1 ll

तब गोकुलमें नंदसुवन अब श्रीवल्लभ राजकुमार l

आपुन चरित्र सिखावत औरन निजमत सेवा सार ll 2 ll

युगलरूप गिरिधरन श्रीविट्ठल लीला ईक अनुसार l

‘चत्रभुज’ प्रभु सुख शैल निवासी भक्तन कृपा उदार ll 3 ll


साज – श्रीजी में आज नन्दमहोत्सव और छठी पूजन के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी घेरदार वागा, रुपहली ज़री की तुईलैस की दोहरी किनारी वाला जामदानी का सूथन, चोली, एवं पटका धराये जाते हैं. पटका का एक छोर ऊर्ध्व भुजा की ओर और एक शैया मन्दिर की और धराया जाता है.

ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के जामदानी के धराये जाते है.


श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे एवं पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.


श्रीमस्तक पर केसरी रंग के डोरिया की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम की सुनहरी किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल धराये जाते हैं. विविध पुष्पों की चार सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

आज अलक धराया जाता हैं.

श्रीहस्त में दो कमलछड़ी, पन्ना एवं हरे मीना के दो वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.


पट गोटी राग रांग की आती हैं.

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