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व्रज - आश्विन शुक्ल चतुर्दशी (शरद का उत्सव)

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - आश्विन शुक्ल चतुर्दशी (शरद का उत्सव)

Wednesday, 16 October 2024


पूरी पूरी पूरण मासी पूरयो पूरयौ शरदको चंदा,

पूरयौ है मुरली स्वर केदारो कृष्णकला संपूरण भामिनी रास रच्यो सुख कंदा.


शरद पूर्णिमा (रासोत्सव)

आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (जलेबी-इलायची) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. इसके साथ शाकघर के मीठा में आज के दिन सीताफल का रस भी श्रीजी को विशेष रूप से अरोगाया जाता है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है.

आज श्रीजी को सखड़ी में केसर युक्त पेठा, मीठी सेव, श्याम खटाई, कचहरिया आदि आरोगाया जाता हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


बन्यौ रास मंडल अहो युवति यूथ मध्यनायक नाचे गावै l

उघटत शब्द तत थेई ताथेई गतमे गत उपजावे ll 1 ll

बनी श्रीराधावल्लभ जोरी उपमाको दीजै कोरी, लटकत कै बांह जोरी रीझ रिझावे l

सुरनर मुनि मोहे जहा तहा थकित भये मीठी मीठी तानन लालन वेणु बजावे ll 2 ll

अंग अंग चित्र कियें मोरचंद माथे दियें काछिनी काछे पीताम्बर शोभा पावे l

‘चतुर बिहारी’ प्यारी प्यारा ऊपर डार वारी तनमनधन, यह सुख कहत न आवे ll 3 ll


साज - “द्वे द्वे गोपी बीच बीच माधौ” अर्थात दो गोपियों के बीच माधव श्री कृष्ण खड़े शरद-रास कर रहें हैं ऐसी महारासलीला के अद्भुत चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद लट्ठा की बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी और रुपहली ज़री का सूथन व काछनी तथा मेघश्याम रंग की दरियाई (रेशम) की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली धरायी जाती है. लाल रंग का रेशमी रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद डोरिया के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज उत्सव के भारी श्रृंगार धराये जाते है. हीरे की प्रधानता एवं मोती, माणक, पन्ना से युक्त जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर हीरे का जड़ाव का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. आज चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.

कस्तूरी, कली एवं कमल माला धरायी जाती हैं

हीरा का शरद उत्सव वाला कोस्तुभ धराया जाता हैं.

श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट उत्सव का व गोटी जड़ाऊ काम की आती है.

आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में शरद की डांडी की दिखाई जाती हैं.


पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे का जड़ाव का चौखटा धराया जाता है.

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