व्रज – आश्विन शुक्ल प्रतिपदा
Thursday, 03 October 2024
प्रथम विलास कियो श्यामाजू
किनौ विपिन विहारजू ।।
उनके बिधकी शोभा बरनो
कहत न आवे पारजू ।।१।।
बाके युथकी गणना नाहीं
निर्गुण भक्ति कहावे ।।
तारी संख्या कहत न आवै
शेषहू पार न पावे ।।२।।
घोषघोष प्रति गलिनगलिन प्रति
रंगरंग अंबर साजें ।।
कियौ शृंगार नखशिख अंग युवती
ज्यों करनी गण साजें ।।३।।
बहु पूजा लै चली वृंदावन
पान फूल पकवानै ।।
तारे यूथ मुख्य संजावलि
चंद्रकलासी बानै ।।४।।
पोहौंची जाय निकुंज भवनमें
दरसी वृंदादेवी ।।
तारे पद बदन करि माँग्यौ
श्याम सुंदर वर एवा ।।५।।
तिहिंछिन प्रभुजी आप पधारे
कोटिक मन्मथ मोहै ।।
अंगअंग प्रति रुपरुप प्रति
उपमा रवि शशि कोहै ।।६।।
द्वैजुग जाम श्याम श्यामा संग
केलि बिबिध रंग कीने ।।
उठत तरंग रंगरस उछलित
दास रसिक रस पीने ।।७।।
आजसे नौ दिन तक नव विलास की भाव भावना का आनंद ले
आश्विन नवरात्रि स्थापना, नवविलास आरम्भ
श्री हरिराय महाप्रभु ने इस नवविलास के भाव से नव पद की रचना की है. हालांकि श्रीजी मंदिर में ये पद नहीं गाये जाते परन्तु अन्यत्र कई वैष्णव मंदिरों में प्रतिदिन एक विलास गाया जाता है.
आज प्रथम विलास की भावना का स्थल निकुंजभवन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी चन्द्रावलीजी है. आज से मुरली एवं रास के पद गाये जाते हैं. इकाइयों के पद सायं भोग समय गाये जाते हैं और रास-पंचाध्यायी का पाठ भोग दर्शन का टेरा आये पश्चात एवं प्रभु शयन भोग अरोगें तब किया जाता है.
आज श्रीजी को नियम के लाल छापा के केसरी सूथन, चोली एवं चाकदार वागा और श्रीमस्तक पर कुल्हे धरायी जाती है.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से चन्द्रकला (सूतर फेणी) और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर-युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.भोग आरती में फीका में चालनी (तला हुआ मेवा )आरोगाया जाता हैं.
सखड़ी में केसरी पेठा व मीठी सेव खडंरा प्रकार इत्यादि अरोगाया जाता हैं.
आज से प्रतिदिन दोनों अनोसर में सिंहासन से शैयाजी तक पेंडा (रुई से भरी पतली गादी) बिछाई जाती है जिससे हल्की ठंडी भूमि पर ठाकुरजी को शीत का आभास ना हो.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
बल बल आज की बानिक लाल l
कसुम्भी पाग पीत कुलह भरित कुसुम गुलाल ll 1 ll
विश्वमोहन नवकेसर को तिलक ललित भाल l
सुन्दर मुख कमल हि लपटावत मधुप जाल ll 2 ll
बरुनी पीत विथुरित बंद सुभग उर विसाल l
‘गोविंद’ प्रभुके पदनख परसत तरुन तुलसीमाल ll 3 ll
साज – आज श्रीजी में लाल रंग की छापा की त्रिशूल वाली सफेद ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित एवं हरे रंग के हांशिया वाली (किनारी वाली) पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी आदि सर्वसाज जड़ाव स्वर्ण के धरे जाते हैं.
प्रभु के सम्मुख चांदी की त्रस्टीजी धरे जाते हैं जो कि दिन के अनोसर में ही धरे जाते हैं.
वस्त्र – आज श्रीजी को लाल छापा का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी की चाकदार एवं चोली धरायी जाती है. सूथन हरे रंग का आता हैं.
ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व-आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल छापा के कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरा की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरा का जड़ाव का चौखटा सुशोभित होता है.
एक दुलड़ा एवं सतलड़ा धराया जाता हैं.
नीचे सात पदक एवं ऊपर हीरा पन्ना, मानक एवं मोती के हार धराए जाते है
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाति हैं.रंग-बिरंगी पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का एवं गोटी सोने की जाली वाली आती हैं.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.
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