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व्रज - आश्विन शुक्ल सप्तमी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - आश्विन शुक्ल सप्तमी

Thursday, 10 October 2024


सातौ विलास कियौ श्यामाजू, गह्वर वनमें मतौजू कीन ।

मुख्य कृष्णावती सहचरी, लघु लाघव अति ही प्रवीन ।। १ ।।

बनदेवी हे गुंजा कुंजा, पुहुपन गुही सुमाल ।

चंद्रावली प्रमुदित बिहसत मुख, मुख ज्यों मुनिया लाल ।। २ ।।

रच्यौ खेल देवी ढिंग युवती, कोक कला मनोज ।

अति आवेश भये अवलोकत, प्रगटे मदन सरोज ।। ३ ।।

कोऊ भुजधर कर चरन उर कोऊ, अंग अंग मिलाय ।

कुंवर किशोरकिशोरी रसिकमणि, दास रसिक दुलराय ।। ४ ।।


विशेष – आज नवविलास के अंतर्गत सप्तम विलास का लीला स्थल गहवर वन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी कृष्णावतीजी हैं और सामग्री वड़ी एवं बूंदी है.

यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है.


आगम के शृंगार


इस वर्ष आश्विन शुक्ल नवमी (शनिवार, 12 अक्टूबर 2024) के दिन विजय दशमी (दशहरा) का पर्व है और अष्टमी (शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024) के दिन नियम का मुकुट काछनी का श्रृंगार धराया जाता है अतः उत्सव पूर्व धराया जाने वाला आगम का श्रृंगार आज सप्तमी के दिन धराया जाएगा.


सामान्य तौर पर प्रत्येक बड़े उत्सव के पूर्व लाल वस्त्र, पीले ठाड़े वस्त्र एवं पाग पर सादी चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है.

यह श्रृंगार प्रभु को अनुराग के भाव से धराया जाता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग

कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll

मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान

जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll

प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन

अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll

वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल

कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll


साज – आज श्रीजी में लाल रंग के छापा वाली सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी और हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को लाल रंग के छापा के सुनहरी एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर लाल रंग की छापा की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल की एक जोड़ी धरायी जाती हैं.

आज चार माला पन्ना की धराई जाती हैं.

विविध पुष्पों की एक एवं दूसरी गुलाब के पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट लाल व गोटी छोटी सोना की आती है.


आरसी शृंगार में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

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