व्रज – आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी
Tuesday, 25 June 2024
श्वेत मलमल का छापा का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर तुर्रा के शृंगार
राजभोग दर्शन –
साज – (राग : सारंग)
आवत ही यमुना भर पानी l
श्याम रूप काहुको ढोटा वाकी चितवन मेरी गैल भुलानी ll 1 ll
मोहन कह्यो तुमको या व्रजमें हमे नहीं पहचानी l
ठगी सी रही चेटकसो लाग्यो तब व्याकुल मुख फूरत न बानी ll 2 ll
जा दिनतें चितये री मो तन तादिनतें हरि हाथ बिकानी l
'नंददास' प्रभु यों मन मिलियो ज्यों सागरमें सरित समानी ll 3 ll
साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग के मलमल की बिना किनारी की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल का बिना किनारी का आड़बंद धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र नहीं धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण मोती के, श्रीमस्तक पर श्वेत मलमल की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, तुर्रा और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं श्वेत पुष्पों की ही दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी और एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का व गोटी छोटी हक़ीक की धरायी जाती हैं.
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