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व्रज – आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा

Sunday, 23 June 2024


प्रीतम प्रीत ही तें पैये ।

यद्यपि रूप गुण शील सुघरता, इन बातन न रीजैयें ॥१॥

सतकुल जन्म करम शुभ लक्षण, वेद पुरान पढ़ैये ।

“गोविंदके प्रभु” बिना स्नेह सुवालों, रसना कहा जू नचैये ॥२॥


भावार्थ- विशुद्ध प्रेम ही अन्त:करण को पवित्र करता है. परम प्रीति ही भक्ति है. प्रभु प्रेम द्वारा ही वश में होते हैं.

रूप, गुण, शील, सुघड़ता इन सब से प्रभु प्रसन्न नहीं होते हैं. अच्छे कुल में जन्म होना, कर्म, शुभ लक्षण, वेद पुराणों का ज्ञान यह सब हो किन्तु प्रेम नहीं हो तो सब व्यर्थ है.


नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री का गादी उत्सव


विशेष – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री का गादी उत्सव हैं. विक्रम संवत १९३२ में आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा के दिन आप तिलकायत की गादी पर आसीन हुए थे.

आपने प्रभु सुखार्थ कई भव्य मनोरथों का आयोजन किया और नाथद्वारा की उत्तरोत्तर प्रगति के क्षेत्र में कई कार्य किये अतः आपका युग नाथद्वारा के लिए स्वर्णयुग कहा जाता है.


सेवाक्रम - गादी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.


झारीजी में सभी समय यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.


आज का श्रृंगार भी निश्चित है. आज प्रभु को गुलाबी रंग की परधनी, श्रीमस्तक पर पाग एवं हीरा के आभरण धराये जाते हैं.

आज से कीर्तनों में सूहा, बिलावल एवं सायंकाल सोरठ राग भी गाये जाते हैं.


गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को विशेष रूप से आमरस की तवापूड़ी व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में आमरस-भात अरोगाये जाते हैं.


प्रभु को नियम से आमरस की तवापूड़ी वर्ष में केवल आज के दिन ही अरोगायी जाती है.

आज से सायंकाल भोग दर्शन के समय श्रीजी के सम्मुख मणिकोठा में पुष्पों पत्तियों से सुसज्जित फुलवारी धरी जाती है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


गायनसों रति गोकुलसों रति गोवर्धनसों प्रीति निवाहीं l

श्रीगोपाल चरण सेवा रति गोप सखा सब अमित अथाई ll 1 ll

गोवाणी जो वेदकी कहियत श्रीभागवत भलें अवगाही ll 2 ll

‘छीतस्वामी’ गिरिधरन श्रीविट्ठल नंदनंदन की सब परछांई ll 3 ll


साज – आज श्रीजी में श्री गिरिराजजी की कन्दरा की निकुंज एवं श्री स्वामिनीजी आदि के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी रंग की मलमल की परधनी धरायी जाती है. परधनी रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होती है.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की ऊपर छोर व नीचे लटकन वाली पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम की रुपहली किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. अलख धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में हीरा की बघ्घी आती है व त्रवल नहीं धराये जाते. हरे एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीं हीरे की एक सुन्दर माला हमेल की भांति भी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.


पट ऊष्णकाल का व गोटी बड़ी हकीक की आती है.

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