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व्रज – आषाढ़ कृष्ण षष्ठी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – आषाढ़ कृष्ण षष्ठी

Thursday, 27 June 2024


श्वेत मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर केसरी गोल पाग पर तुर्रा के शृंगार (पद के भाव के शृंगार)


राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)


सोहत श्याम मनोहर गात l

श्वेत परदनी अति रसभीनी केसर पगिया माथ ll 1 ll

कर्णफूल प्रतिबिंब कपोलन अंग अंग मन्मथ ही लजात l

‘परमानंद’ दास को ठाकुर निरख वदन मुसकात ll 2 ll


साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की बिना किनारी की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल गोल छोर वाली बिना किनारी की परधनी धरायी जाती है.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में मोती कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ एक श्वेत एवं एक कमल के पुष्पों की माला हमेल की भांति धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.


पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

 
 
 

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