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व्रज - आषाढ़ कृष्ण सप्तमी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - आषाढ़ कृष्ण सप्तमी

Friday, 28 June 2024


बादली मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा के शृंगार


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


गोविंद लाडिलो लडबौरा l

अपने रंग फिरत गोकुल में श्याम बरण जैसे भौंरा ll 1 ll

किंकणी कवणित चारू चल कुंडल तन चंदन की खौरा l

नृत्यत गावत वसन फिरावत हाथ फूलन के झोरा ll 2 ll

माथे कनक वरण को टिपारो ओढ़े पीत पिछोरा l

देखी स्वरुप ठगी व्रजवनिता जिय भावे नहीं औरा ll 3 ll

जाकी माया जगत भुलानो सकल देव सिरमौरा l

‘परमानंददास’ को ठाकुर संग ढीठौ ना गौरा ll 4 ll


साज – आज श्रीजी में बादली मलमल की, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.

गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती हे.


वस्त्र – श्रीजी को आज बादली मलमल का सुनहरी किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है.


श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. उष्णकाल के मोती के सर्वआभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर बादली रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, रूपहरी, लूम क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. .

गुलाबी एवं सफ़ेद पुष्पों की सुन्दर दो मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, सुवा के वेणुजी एवं वैत्रजी धराये जाते हैं.


पट उष्णकाल का व गोटी हक़ीक की आती है.

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