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व्रज – आषाढ़ शुक्ल अष्टमी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – आषाढ़ शुक्ल अष्टमी

Sunday, 14 July 2024


आज कछु कुंजनमें बरबासी ।

दलबादरमें देख सखीरी चमकत है चपलासी ।।१।।

न्हेनी न्हेनी बूदंन बरखन लागी पवन चलत सुखरासी ।

मंद मंद गरजन सुनियत है नाचत मोर कलासी ।।२।।


अधरंग (गहरे पतंगी) मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और चमकनी गोल चंद्रिका के शृंगार


राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)


कुंवर चलोजु आगे गहवरमें जहाँ बोलत मधुरे मोर l

विकसत वनराजी कोकिला करत रोर ।।१।।

मधुरे वचन सुनत प्रीतम के लीनो प्यारी चितचोर l

‘गोविंद’ बलबल पिय प्यारी की जोर ।।२।।


साज – आज श्रीजी में श्री गिरिराजजी की कन्दरा में निकुंजलीला के सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है जिसमें श्री स्वामिनीजी, श्री यमुनाजी एवं श्री गोपीजन श्रीप्रभु की सेवा में रत है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र - श्रीजी को अधरंग (गहरे पतंगी) मलमल की परधनी धरायी जाती है. ठाड़े वस्त्र नहीं धराये जाते हैं.


श्रृंगार - प्रभु को आज छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

हीरा के सर्व आभरण, श्रीमस्तक पर अधरंग (गहरे पतंगी) रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम तथा चमकनी गोल चंद्रिका और बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.

श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं.

पीले पुष्पों की रंगीन थाग वाली दो कलात्मक सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. इसी प्रकार दो मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.


पट ऊष्णकाल का एवं गोटी हक़ीक की आती है.

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