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व्रज - आषाढ़ शुक्ल द्वादशी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - आषाढ़ शुक्ल द्वादशी

Thursday, 18 July 2024


गुलाबी मलमल की धोती, पटका एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : मल्हार)


हों इन मोरनकी बलिहारी l

जिनकी सुभग चंद्रिका माथे धरत गोवर्धनधारी ll 1 ll

बलिहारी या वंश कुल सजनी बंसी सी सुकुमारी l

सुन्दर कर सोहे मोहन के नेक हू होत न न्यारी ll 2 ll

बलिहारी गुंजाकी जात पर महाभाग्य की सारी l

सदा हृदय रहत श्याम के छिन हू टरत न टारी ll 3 ll

बलिहारी ब्रजभूमि मनोहर कुंजन की अनुहारी l

‘सूरदास’ प्रभु नंगे पायन अनुदिन गैया चारी ll 4 ll


साज - आज श्रीजी श्वेत मलमल पर नाचते मोर की चितराम की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज प्रभु को गुलाबी रंग की मलमल धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता हैं. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं हमेल की भांति दो मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झिने लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.


पट ऊष्णकाल के राग-रंग का एवं गोटी हक़ीक की आती हैं.

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