व्रज – आषाढ़ शुक्ल नवमी
Monday, 15 July 2024
केसरी धोती-पटका और श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा के श्रृंगार
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : मल्हार)
जो सुख होत गोपाले गाये l
सो न होत जप तप व्रत संयम कोटिक तीरथ न्हाये ।।१।।
गदगद गिरा लोचन जलधारा प्रेम पुलक तनु छाये ।
तीनलोक सुख तृणवत लेखत नंदनंदन उर आये ।।२।।
दिये नहि लेत चार पदारथ श्रीहरि चरण अरुझाये ।
‘सूरदास’ गोविंद भजन बिन चित्त नहीं चलत चलाये ।।३।।
साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र - श्रीजी को आज केसरी धोती एवं राजशाही पटका धराये जाते हैं.
श्रृंगार - प्रभु को आज ऊष्णकालीन हल्का छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.
तुलसी एवं श्वेत पुष्पों वाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. कली आदि माला धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झिने लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट राग रंग का एवं गोटी हक़ीक की आती हैं.
Comments