व्रज – कार्तिक कृष्ण तृतीया
Saturday, 19 October 2024
राते पीरे टिपारा को शृंगार
आज प्रभु को 'राते पीरे टिपारा' का श्रृंगार धराया जाता है.
'राते पीरे' देशी ब्रजभाषा का शब्द है जिसका हिन्दी अर्थ 'लाल पीला' होता है.
आज से प्रतिदिन सरसलीला के कीर्तन गाये जाते हैं.
प्रातः राग–बिलावल में, राजभोग आवें तब राग-सारंग में एवं शयन भोग आवें तब राग कान्हरो के कीर्तन गाये जाते हैं. ओसरा (बारी-बारी) से दो अथवा चार पद गाये जाते हैं.
दीपावली के पूर्व अष्टसखियों के भाव से आठ विशिष्ट श्रृंगार धराये जाते हैं.
जिस सखी का श्रृंगार हो उनकी अंतरंग सखी की ओर से ये श्रृंगार धराया जाता है.
आज का श्रृंगार श्री स्वामिनीजी के भाव से धराया जाता है जिसमें लाल ज़री के चाकदार वागा, श्रीमस्तक पर (राते पीरे) लाल ज़री का टिपारा, पीले तुर्री व पेच (मोरपंख का टिपारा का साज), गायों के घूमर में प्रभु विराजित हैं ऐसी पिछवाई एवं श्वेत वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण फिरोज़ा के धराये जाते हैं.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
मदन गोपाल गोवर्धन पूजत l
बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि मधुर मधुर मुरली कल कूजत ll 1 ll
कुंकुम तिलक लिलाट दिये नव वसन साज आई गोपीजन l
आसपास सुन्दरी कनक तन मध्य गोपाल बने मरकत मन ll 2 ll
आनंद मगन ग्वाल सब डोलत ही ही घुमरि धौरी बुलावत l
राते पीरे बने टिपारे मोहन अपनी धेनु खिलावत ll 3 ll
छिरकत हरद दूध दधि अक्षत देत असीस सकल लागत पग l
‘कुंभनदास’ प्रभु गोवर्धनधर गोकुल करो पिय राज अखिल युग ll 4 ll
साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की धरती (आधार वस्त्र) पर श्वेत ज़री से गायों, बछड़ों के चित्रांकन वाली एवं श्वेत ज़री की लैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – श्रीजी को आज लाल ज़री का रुपहली ज़री की तुईलैस से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले (लीम्बोई) रंग के धराये जाते
हैं.पटका पिला धराया जाता हैं.
श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फिरोज़ा तथा सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी व वैजयन्ती माला धरायी जाती हैं.
श्रीमस्तक पर मोर के टिपारा का साज – लाल ज़री की टिपारा की टोपी के ऊपर सिरपैंच, पीले तुर्री व पेच (मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. बायीं ओर मीना की चोटीजी (शिखा) धरायी जाती है. श्रीकर्ण में फ़ीरोज़ा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़ीरोज़ा के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी सोना की बाघ-बकरी की आती है.
संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. टिपारा बड़ा नहीं किया जाता व लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं और शयन दर्शन खुलते हैं.
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