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व्रज - कार्तिक कृष्ण द्वादशी(धनतेरस के आपके शृंगार)

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - कार्तिक कृष्ण द्वादशी(धनतेरस के आपके शृंगार)

Tuesday, 29 October 2024


इस वर्ष चतुर्दशी (गुरुवार, 31 अक्टूबर) के दिन दीपावली होने के कारण श्रृंगार का क्रम परिवर्तित हुआ है जिसमें आज द्वादशी के दिन धनतेरस के उत्सव का राग, भोग व श्रृंगार का क्रम होगा. यद्यपि धनतेरस का उत्सव बुधवार, 30 अक्टूबर 2024 को है.


आज माई धन धोवत नंदरानी ।

कार्तिक वदि तेरस दिन उत्तम गावत मधुरी बानी ।।१।।

नवसत साज श्रृंगार अनुपम करत आप मन मानी ।

कुम्भनदास लालगिरिधर को देखत हियो सिरानी ।।२।।


धनतेरस, धन्वन्तरी जयंती


आज मनमोहन रूपी धन को अपने ह्रदय में आत्मसात करते हुए धनतेरस के श्रृंगार के दर्शन का आनंद ले


विशेष – आज धनवन्तरी जयन्ती है. श्री धनवन्तरी, भगवान विष्णु के 17वें अवतार, देवों के वैध व प्राचीन उपचार पद्दति आयुर्वेद के जनक हैं.


आज के दिन को धनतेरस भी कहा जाता है. व्रज में गौवंश ही धन का स्वरुप है अतः श्री ठाकुरजी एवं व्रजवासी गायों का श्रृंगार करते हैं, उनका पूजन करते हैं एवं उनको थूली खिलाते हैं. आज से चार दिवस दीपदान का विशेष महत्व है अतः व्रज में सर्वत्र दीपदान और रौशनी की जाती है.


आज नन्दरानी यशोदाजी भौतिक लक्ष्मीजी की प्रतिमा को स्नान करा, श्रृंगार कर प्रभु के सम्मुख रखती हैं एवं बालक के पहनने के आभूषण को धोती हैं जिससे श्रीजी में मंगला दर्शन उपरांत ‘धन धोवत व्रजरानी’ जैसे पद गाये जाते हैं.


श्रीस्वामिनीजी ने श्रीठाकुरजी को अपना सर्वस्व मान कर धन के रूप में प्राप्त किया है ऐसा भाव भी है जिसे प्रदर्शित करते पद भी प्रभु के सम्मुख गाये जाते हैं – ‘राधा मन अति मोद बढ्यो है, मनमोहन धन पाई.’


आज की सेवा ललिताजी के भाव की है.


विगत दशमी से कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाईदूज) तक प्रभु पूरे दिन झारीजी में यमुनाजल अरोगते हैं.

चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.

गेंद, चौगान, दिवाला सभी सोने के आते हैं. आज दिनभर प्रभु को भोग स्वर्ण पात्रों में धरे जाते हैं.


उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.


श्रीजी को आज नियम के हरी सलीदार ज़री के चाकदार वागा एवं मोरपंख की चंद्रिका का वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है. कत्थई आधारवस्त्र पर कला बत्तू के सुन्दर काम से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया पर मखमल की खोल आती है.


आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरयुक्त चन्द्रकला अरोगायी जाती है.

उत्सव होने के कारण विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.


राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव आदि अरोगाये जाते हैं. अदकी में गेहूं के रवा की खीर अरोगायी जाती है.

भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी (घी में तले नमकयुक्त सूखे मेवे व बीज) अरोगाये जाते हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


गोधन पूजा करके गोविंद सब ग्वालन पहेरावत l

आवो सुबाहु सुबल श्रीदामा ऊंचे लेले नाम बुलावत ll 1 ll

अपने हाथ तिलक दे माथे चंदन और बंदन लपटावत l

वसन विचित्र सबन के माथें विधिसों पाग बंधावत ll 2 ll

भाजन भर भर ले कुनवारो ताको ताहि गहावत l

‘चत्रभुज’प्रभु गिरिधर ता पाछे धोरी धेनु खिलावत ll 3 ll


साज - श्रीजी में आज लाल रंग की मखमल के ऊपर सुनहरी सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल रंग की मखमल की बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज हरे रंग सलीदार ज़री की सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं पटका धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा - हीरा, मोती, प्रमुखतया माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.


श्रीमस्तक पर हरे रंग की सलीदार ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर अनारदाना को पट्टीदार सिरपैंच (दोनों ओर मोती की माला से सुसज्जित), पन्ना की लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में माणक के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में टोडर धराया जाता है. हांस, कड़ा, हस्त सांखला आदि सर्व श्रृंगार धराये जाते हैं.


श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर स्वर्ण का हीरा जड़ित चौखटा धराया जाता है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, पन्ना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (माणक व पन्ना के) धराये जाते हैं.

पट हरा, गोटी शतरंज की सोने की व आरसी लाल मखमल की आती है.


शयन समय मणिकोठा में हांडी में रौशनी की जाती है, दीपक का पाट साजा जाता है और रंगोली मांडी जाती है. निज मन्दिर में रौशनी का झाड़ आता है.

डोलतिबारी में आज से रौशनी नहीं की जाती.


आज से श्रीजी को प्रतिदिन उत्थापन के फल भोग में गन्ना के टूक (छीले हुए गन्ना के टुकड़े) अरोगाये जाने प्रारंभ हो जाते हैं. ये सामग्री प्रतिदिन आगामी डोलोत्सव तक अरोगायी जाती है.


संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़ेकर छोटे (छेडान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम, तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.


शयन समय प्रभु बंगले (हटड़ी) में बिराजते हैं. मनोरथ के रूप में विविध सामग्रियां अरोगायी जाती हैं.


आज शयन उपरांत नाथद्वारा के आसपास के विभिन्न गावों से ग्रामीण लोग अपने खेतों से और श्रीजी के बगीचों से ठाकुरजी को अन्नकूट पर अरोगाने के लिए आज बैलगाड़ियों में भरकर पालक की भाजी लाते हैं. चतुर्दशी के पूरे दिन भाजी की सेवा चलती है.


दशमी से प्रतिदिन शयन के अनोसर में प्रभु को सूखे मेवे और मिश्री से निर्मित मिठाई, खिलौने आदि का थाल आरोगाया जाता है.



इसके अतिरिक्त दशमी से ही अनोसर में प्रभु के सम्मुख इत्रदान व चोपड़ा (इलायची, जायफल, जावित्री, सुपारी और लौंग आदि) भी रखे जाते हैं.

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