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व्रज - कार्तिक शुक्ल द्वादशी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - कार्तिक शुक्ल द्वादशी

Tuesday, 13 November 2024


मोर के चंदन मोर बन्यौ है

दिन दूल्हे हैं अलि नंद को नंदन।

श्री वृषभानु सुता दुलही

दिन जोड़ी बनी विधना सुखकंदन।।

आवै कह्यौ न कछु रसखानि हो

दोऊ बंधे छवि प्रेम के फंदन ।

जाहि विलोकें सबै सुख पावत

ये ब्रजजीवन हैं दुखदंदन ।।


गुसांई जी के प्रथम पुत्र श्री गिरधरजी एवं पंचम पुत्र श्री रघुनाथजी (कामवन) के प्राकट्योत्सव के शृंगार, लालाजी का अन्नकूट,

घेरदार वागा एवं चीरा के साथ सेहरा का श्रृंगार


आज सायंकाल श्री नवनीतप्रियाजी के प्रसादी भंडार के समीप विराजित प्रभु श्री लालाजी का अन्नकूट मनोरथ होता है.


श्रीजी का सेवाक्रम - पर्व होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी की मेढ़ से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

गादीजी, खंड आदि मखमल के आते हैं. गेंद, दिवाला चौगान सभी सोने के आते हैं.


चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग, संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में की जाती है.

प्रभु की झारीजी सारे दिन यमुना जल से भरी जाती हैं.


सेवाक्रम - अक्षय नवमी की भांति आज भी श्रीजी की दिन भर की सेवा द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर की होती है अर्थात यदि द्वितीय पीठ के गौस्वामी परिवार के सदस्य नाथद्वारा में हों तो आज मंगला से शयन तक श्रीजी की सेवा के अधिकारी होते हैं अतः मंगला से शयन तक सभी समां में सेवा हेतु श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर में खबर भेजी जाती है एवं द्वितीय गृहाधीश श्री कल्याणरायजी व उनके परिवारजन सभी समां में श्रृंगार धरने प्रभु को भोग धरने व आरती करने पधारते हैं.


आज प्रभु को धराये जाने वाले वस्त्र भी द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं. वस्त्र के साथ जलेबी घेरा की एक छाब भी श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु वहाँ से आती हैं.


आज श्रीजी में विवाह के भाव से मोरछल करती एवं चँवर डुलाती गोपियों की पिछवाई एवं संकेत वन में विवाह के भाव से विवाह का श्रृंगार एवं सेहरा धराये जाते हैं.


श्रृंगार समय विवाह के कीर्तन गाये जाते हैं.


आज के श्रृंगार की विशेषता यह है कि वर्षभर में केवल आज ही श्रीजी को घेरदार वागा के साथ सेहरा का श्रृंगार धराया जाता है. इसका कारण यह है कि कल के उत्सवनायक श्री गिरधरजी जिस दिन अपने सेव्य स्वरुप श्री मथुराधीश जी के मुखारविंद में सदेह प्रवेश कर नित्यलीला में पधारे उस दिन श्री मथुराधीशजी ने घेरदार वागा के साथ सेहरा का श्रृंगार धराया था.


आज उन्हीं श्री गिरधरजी का उत्सव का श्रृंगार होने से वही श्रृंगार श्रीजी को धराया जाता है.


कल के उत्सव के भोगक्रम के रूप में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरयुक्त जलेबी के टूक पाटिया और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का अरोगायी जाएगी.


राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में मीठी सेव स्यामखटाई अरोगाये जायेंगे


विवाह के पश्चात श्री ठाकुरजी सपरिवार वृषभानजी के घर भोजन को पधारते हैं इस भाव से राजभोग आवे तब आसावरी राग में यह कीर्तन गाया जाता है.


श्रीवृषभानसदन भोजन को नंदादिक मिलि आये हो l

तिनके चरनकमल धरिवे को पट पावड़े बिछाये हो ll 1 ll

रामकृष्ण दोऊ वीर बिराजत गौर श्याम दोऊ चंदा हो l

तिनके रूप कहत नहीं आवे मुनिजन के मनफंदा हो ll 2 ll

चंदन घसि मृगमद मिलाय के भोजन भवन लिपाये है l

विविध सुगंध कपूर आदि दे रचना चौक पुराये हो ll 3 ll

मंडप छायो कमल कोमल दल सीतल छांहु सुहाई हो l

आसपास परदा फूलनके माला जाल गुहाई हो ll 4 ll....अपूर्ण


इसके अतिरिक्त शयन तक विवाह के ही कीर्तन गाये जाते हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


दिन दुल्है मेरो कुंवर कन्हैया l

नित उठ सखा सिंगार बनावत नितही आरती उतारत मैया ll 1 ll

नित उठ आँगन चंदन लिपावे नित ही मोतिन चौक पुरैया l

नित ही मंगल कलश धरावे नित ही बंधनवार बंधैया ll 2 ll

नित उठ व्याह गीत मंगलध्वनि नित सुरनरमुनि वेद पढ़ैया l

नित नित होत आनंद वारनिधि नित ही ‘गदाधर’ लेत बलैया ll 3 ll


साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base Fabric) पर मोरछल करती एवं चँवर डुलाती गोपियों की ज़री के ज़रदोज़ी के काम (Work) से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर हरे रंग की बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी लाल ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं एवं केसरी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सुनहरी ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – प्रधानतया हीरा, माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर सुनहरी लाल ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर हीरा को सेहरा, दो तुर्री, मोती की लूम एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर हीरा की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है.

श्रीकंठ में हीरा, पन्ना, माणक और मोती के हार, दुलड़ा आदि उत्सववत धराये जाते हैं. गुलाबी एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.

पट काशी का गोटी राग रंग के आते हैं.

आरसी चार झाड़ की दिखाई जाती हैं.


संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं.


श्रीमस्तक पर टिका एवं सिरपेच एवं लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

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