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व्रज - कार्तिक शुक्ल द्वितीया

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - कार्तिक शुक्ल द्वितीया

Sunday, 03 November 2024


आज दूज भैया की कहियत, कर लिये कंचन थाल के l

करो तिलक तुम बहन सुभद्रा, बल अरु श्रीगोपाल के ll १ ll

आरती करत देत न्यौछावर, वारत मुक्ता माल के l

‘आशकरण’ प्रभु मोहन नागर, प्रेम पुंज ब्रजबाल के ll २ ll


भाईदूज, यम द्वितीया


श्रीजी को आज नियम के लाल खीनखाब के चोली, सूथन, घेरदार वस्त्र धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फुलक शाही ज़री का चीरा (ज़री की पाग) व पटका रुपहली ज़री का धराया जाता है.


उत्सव भोग के रूप में गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से प्रभु को चाशनी वाले कसार के गुंजा व दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.


राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. सखड़ी में मूंग की द्वादशी अरोगायी जाती है.


राजभोग में आगे के भोग धरकर श्रीजी को राजभोग की माला धरायी जाती है. झालर, घंटा, नौबत व शंख की ध्वनि के मध्य दण्डवत कर प्रभु को तिलक किया जाता है.

प्रभु को बीड़ा व तुलसी समर्पित की जाती है. तदुपरांत विराजित सभी स्वरूपों को तिलक किया जाता है.

आटे की चार मुठियाँ वार के चून (आटे) की आरती की जाती है और न्यौछावर की जाती है.

तदुपरांत पहले श्रीजी के मुखियाजी श्री तिलकायतजी को तिलक करते हैं और फिर श्री तिलकायतजी सभी उपस्थित सेवकों को तिलक करते हैं.


बहन सुभद्रा के घर भोजन अरोगें इस भाव से प्रभु आज राजभोग अरोगते हैं.

भीतर तिलक व आरती होवें तब आशकरणदासजी द्वारा रचित निम्न कीर्तन गाया जाता है -


आज दूज भैया की कहियत, कर लिये कंचन थाल के l

करो तिलक तुम बहन सुभद्रा, बल अरु श्रीगोपाल के ll 1 ll

आरती करत देत न्यौछावर, वारत मुक्ता माल के l

‘आशकरण’ प्रभु मोहन नागर, प्रेम पुंज ब्रजबाल के ll 2 ll


भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी (घी में तले नमकीन सूखे मेवे व बीज) अरोगाये जाते हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : धनाश्री)


अब न छांडो चरन कमल महिमा मैं जानी ।

सुरपति मेरो नाम धर्यो लोक अभिमानी ।।१।।

अबलों में नहि जानत ठाकर है कोई ।

गोपी ग्वाल राख लिये मेरी पत खोई ।।२।।

ऐरावत कामधेनुं गंगाजल आनी ।

हरि को अभिषेक कियो जयजय सुर बानी ।।३।।


राजभोग दर्शन –


साज – श्रीजी में आज लाल मखमल की सुरमा-सितारा की ज़री मोती के काम की, वृक्षावली के ज़रदोज़ी के काम वाली नित्य लीलास्थ श्री गोवर्धनलाल जी महाराज वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. तकिया के ऊपर मेघश्याम रंग की एवं गादी एवं चरणचौकी के ऊपर लाल मखमल की बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की खीनख़ाब का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. बायीं ओर कटि (कमर) पर रुपहली ज़री की किनारी वाला लाल कटि-पटका (जिसका एक छोर आगे और एक बग़ल में) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद रंग के चिकने लट्ठा के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती, विशेषकर पन्ना व सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. आज के दिन सदैव ऐसा छोटा श्रृंगार ही धराया जाता है.

श्रीमस्तक पर सुनहरी फुलक शाही ज़री की पाग (चीरा) के ऊपर सिरपैंच के स्थान पर पन्ना, जिसके ऊपर नीचे मोती की लड़, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगे पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी हीरा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं. पट, गोटी जडाऊ व आरसी चार झाड की आती है.



प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चीरा पर लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

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