व्रज - कार्तिक शुक्ल पंचमी
Wednesday, 06 November 2024
लाभ पंचमी के शृंगार
विशेष – लाभपंचमी को लौकिक पर्व माना गया है अतः आज के दिन श्रीजी में इस निमित कुछ विशेष नहीं होता.
ये दिन गोवर्धन धारण व इन्द्रमान भंग के हैं अतः प्रातः से ही गोवर्धनलीला व इन्द्रमान भंग के कीर्तन गाये जाते हैं.
पिछवाई भी गोवर्धनधारण की होती है.
श्रीजी को लाल सलीदार ज़री के चाकदार वागा, चोली, सूथन, टिपारा व लाल मलमल का पटका धराया जाता है.
आभरण वनमाला के परन्तु चरणारविन्द से चार अंगुल ऊपर धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर मोर-चन्द्रिका व दोहरे कतरा धराये जाते हैं.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : धनाश्री)
महाबल कीनो हो व्रजनाथ l
ईत मुरली ऊत गोपिन सो रति ईत गोवर्धन हाथ ll 1 ll
उत बालक पय पान करावत ईत सुरभि तृणखात l
ऊतहि चरत वछरा अपने रस ग्वाल बजावत पाट ll 2 ll
कोप्यो इंद्र महाप्रलय को झर लायो दिन सात l
‘परमानन्द’ प्रभु राख लियो व्रज मेट इंद्र की घात ll 3 ll
साज – आज श्रीजी में गोवर्धनधारण लीला के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. पिछवाई में मल्लकाछ टिपारा के श्रृंगार में कृष्ण-बलराम, नन्द-यशोदा, गोपीजन तथा श्री गिरिराजजी के ऊपर बरसते मेघों का अत्यंत सुन्दर चित्रांकन किया गया है. तकिया के ऊपर मेघश्याम रंग की एवं गादी के ऊपर लाल एवं चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल की बिछावट की जाती है.
वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द से चार अंगुल ऊपर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल ज़री की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोर-चन्द्रिका, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. गुलाब के पुष्पों की एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरियाँ के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती है.
प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती दर्शन उपरांत बड़े कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर टिपारा बड़ा नहीं होता है अतः लूम, तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.
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