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व्रज - कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा (चतुर्दशी क्षय)

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा (चतुर्दशी क्षय)

Friday, 15 November 2024

कार्तिक पूर्णिमा, गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री कृत चार स्वरूपोत्सव


विशेष – आज कार्तिक पूर्णिमा है. आज कार्तिक मास (व्रज अनुसार) का अंतिम दिन है.

कल से गोपमास प्रारंभ हो जायेगा. ललित, पंचम आदि शीतकाल के राग व खंडिता, हिलग आदि कीर्तन गाये जाते हैं.

कार्तिक, मार्गशीर्ष एवं पौष, ये तीनों मास ललिताजी की सेवा के मास हैं. इनमें से एक मास आज पूर्ण होता है.


आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री कृत चार स्वरूपोत्सव का दिन है.

आज के दिन नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविंदलालजी कृत चार स्वरुप के उत्सव में श्री विठ्ठलेशरायजी, श्रीद्वारकाधीशजी एवं श्री बालकृष्णलालजी (सूरत) से पधारे और श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के संग छप्पनभोग का भव्य मनोरथ हुआ था।


श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.


आज नियम से श्रीजी को किरीट धराया जाता है. किरीट को ‘खूप’ या ‘पान’ भी कहा जाता है.

मैं पूर्व में भी कई बार बता चुका हूँ कि अधिक गर्मी व अधिक शीत के दिनों में श्रीजी को मुकुट नहीं धराया जाता अतः उसके स्थान पर इन दिनों किरीट धराया जा सकता है. किरीट दिखने में मुकुट जैसा ही होता है परन्तु मुकुट एवं किरीट में कुछ अंतर होते हैं :


चार स्वरुप के उत्सव के कारण आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.


राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : आसावरी)


गोवर्धन गिरी पर ठाड़े लसत l

चंहु दिस धेनु धरनी धावत तब नवमुरली मुख लसत ll 1 ll

मौर मुकुट मरगजी कछुक फूल सिर खसत l

नव उपहार लिये वल्लभप्रिय निरख दंगचल हसत ll 2 ll

‘छीतस्वामी’ वस कियो चाहत है संग सखा गुन ग्रसत l

झूठे मिस कर इत उत चाहत श्रीविट्ठल मन वसत ll 3 ll


साज – आज श्रीजी को मेघश्याम मखमल के आधारवस्त्र पर सलमा-सितारा के सूर्य, चन्द्र व तारों के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को रुपहली ज़री के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका श्वेत मलमल का धराया जाता है. मोजाजी गुलाबी रंग के एवं ठाड़े वस्त्र पतंगी या मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. मोजाजी के ऊपर हीरे के तोड़ा-पायल धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर जड़ाव का किरीट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरे की चोटी धरायी जाती है.


श्रीकंठ में कस्तूरी, कली आदि व कमल माला धरायी जाती है. सफेद एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में चांदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ज़री का व गोटी मोर की आती है.

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