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व्रज - चैत्र शुक्ल नवमी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - चैत्र शुक्ल नवमी

Wednesday, 17 April 2024

नौमी चैत की उजियारी ।

दसरथ के गृह जनम लियौ है मुदित अयोध्या नारी ll 1 ll

राम लच्छमन भरत सत्रुहन भूतल प्रगटे चारी l

ललित विलास कमल दल लोचन मोचन दुःख सुख कारी ll 2 ll

मन्मथ मथन अमित छबि जलरुह नील बसन तन सारी l

पीत बसन दामिनी द्युति बिलसत दसन लसत सित भारी ll 3 ll

कठुला कंठ रत्न मनि बघना धनु भृकुटी गति न्यारी l

घुटुरुन चलत हरत मन सबको ‘तुलसीदास’ बलिहारी ll 4 ll

रामनवमी

आज श्रीजी में जन्माष्टमी के दिन धरायी जाने वाली लाल पिछवाई साजी जाती है. इसके अतिरिक्त आज प्रभु को नियम के केसरी जामदानी के खुलेबंद के चाकदार वस्त्र और श्रीमस्तक पर कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ धरायी जाती है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी भी अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज अयोध्या प्रगटे राम।

दशरथ वंश उदय कुल दीपक शिव विरंची मुनि भयो विश्राम।।१।।

घर घर तोरन वंदनमाला मोतिन चौक पुरे निज धाम।

परमानंददास तिहि अवसर, बंदीजन के पूरत काम।।२।।

साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.

यही पिछवाई जन्माष्टमी पर आती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - आज श्रीजी को केसरी जामदानी के चोली तथा खुलेबंद के (तनी बाँध के धराये जाते हैं) चाकदार वागा धराये जाते हैं. सूथन लाल छापा का धराया जाता हैं.सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत जामदानी के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा की प्रधानता सहित एवं जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी जामदानी की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर हीरा एवं माणक के शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में उत्सव के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. उत्सव की हीरा की चोटी धरायी जाती है.

बाजु, पोची, पान हीरा माणक के धराये जाते हैं.

नीचे पदक ऊपर हांस, त्रवल, बघनखा,दो हालरा आदि धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.

चैत्री गुलाब के पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.

पट एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आते हैं.

आरसी शृंगार में चार झाड़ की व राजभोग में सोना की डांडी की दिखाई जाती है.


आज मोती का कमल धराया जाता हैं.

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