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व्रज - चैत्र शुक्ल षष्ठी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - चैत्र शुक्ल षष्ठी

Sunday, 14 April 2024

चतुर्थ (काजली, श्याम अथवा केसरी) गणगौर, छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)

आज काजली (श्याम) गणगौर है और श्री यमुनाजी के भाव की है अतः इसे घर की गणगौर भी कहा जाता है.

पारंपरिक रूप से इस दिन महिलाएं श्याम चौफूली चूंदड़ी के वस्त्र धारण करती आयी हैं.

परन्तु वर्ष 1950 में जब वर्तमान तिलकायत श्री राकेशजी महाराज का जन्म हुआ तो उनके जन्म के लगभग एक माह उपरान्त ही गणगौर का त्यौहार था.

तब उनकी मातृचरण अ. सौं. नित्यलीलास्थ विजयलक्ष्मी बहूजी के कथनानुसार श्याम के स्थान पर केसरी पहना जाने लगा.

और तब से नाथद्वारा में केसरी गणगौर की परंपरा आरंभ हुई.

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

दिन में सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.

उत्सव के कारण गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवा युक्त बूंदी के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)

आज श्रीजी में श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.

नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं.

इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.

बड़ा मनोरथ के भाव से श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.

मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात) अरोगाये जाते हैं.

छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सेवककी सुखराशि सदा श्री वल्लभ राजकुमार l

दरसन ही प्रसन्न होत मन पुरुषोत्तम अवतार ll 1 ll

सुदृष्टि चित्तै सिद्धांत बतायो, लीला जग विस्तार l

ईह तजि आन, ज्ञान कहां धावत भूले कुमति विचार ll 2 ll

‘चत्रभुज’ प्रभु उद्धरे पतित श्रीविट्ठल कृपा उदार l

जाके चरन गहि भुज दृढ करी, गिरधर नंद दुलार ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की उत्सव की मलमल की, रुपहली तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर कमल का काम किया हुआ है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग की मलमल का सूथन चोली तथा खुलेबंद के चाकदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे पर माणक का पान, सुनहरी घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल और उत्सव की मीना की चोटी धरायी जाती है.

श्रीकर्ण में माणक के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं.

चैत्री गुलाब के पुष्पों की सुन्दर वनमाला धरायी जाती है.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, माणक के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना को) धराये जाते हैं.

पट पिला गोटी स्याम मीना की व आरसी श्रृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डांडी आती है.


संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. कुल्हे रहे लूम-तुर्रा नहीं धराया जाता है.

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