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व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी

Wednesday, 5 June 2024

ज्येष्ठ मास तपत घाम एसेमें कहां सीधारे श्याम एसी कोन चतुर नार जाको बीरा लीनो हे।।

नेकधों कृपा कीजे हमहूको सुज दीजे जैये फेरि वाके धाम जाको नेह नवीनो हे।।1।।

बाँह पकरि भवन लाई सैया पर दिये बैठाई अरगजा अंग लगाई हियो सीतल कीनो है।।

रसिक प्रीतम कंठ लगाय रसमें रस सो मिलाय अरसपरस केल करत प्रीतम बस कीनो है।।2।।

राजभोग में चंदन की गोली का मनोरथ

विशेष- विगत ज्येष्ठ प्रतिपदा मध्य रात्रि 3 बज कर 29 मिनिट (25 मई 2024) से आगामी ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया रात्रि 01 बज कर 17 मिनिट (8 जून 2024) तक सूर्य रोहिणी नक्षत्र में है.

इस अवधि में प्रभु को चंदन धराया जाना प्रशस्त (उत्तम) माना गया है अतः इस दिन से आगामी पंद्रह दिन श्रीजी को श्रीअंग में चंदन धराया जा सकता है.

वैष्णव अपने सेव्य स्वरूपों को भी प्रेमपूर्वक अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार चंदन धरा सकते हैं.

आज प्रभु के श्रीअंगों (वक्षस्थल, दोनों श्रीहस्त और दोनों चरणकमल) में कुल पांच केशर बरास मिश्रित चंदन की गोलियां धरायी जाती है.

श्रीजी में प्रतिदिन अथवा नियम से चंदन नहीं धराया जाता अपितु मनोरथियों द्वारा आयोजित चंदन धराने के मनोरथ होते हैं और मनोरथ के रूप में ऋतु के अनुरूप विविध सामग्रियां भी अरोगायी जाती हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सखी सुगंध जल घोरके चंदन हरि अंग लगावत l

वदन कमल अलके मधुपनसी टेढ़ी पाग मनभावन ll 1 ll

कोऊ बिंजना कुसुमन के ढोरत कुसुम भूषन ले ले पहेरावत l

मृदुवेली सायंतर क्रीड़त ‘व्रजाधीश’ गुन गावत ll 2 ll

साज - आज श्रीजी में केसरी मलमल की, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के पतले हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.

गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी मलमल का बिना किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच,क़तरा, चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ दो अन्य मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती है.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट गौटी ऊष्णकाल के आते है.


श्रीअंग (वक्षस्थल पर, दोनों श्रीहस्त में और दोनों चरणारविन्द) में चंदन की गोलियां धरायी जाती हैं.

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