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व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया

Saturday, 25 May 2024

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी महाराज कृत चार स्वरूपोत्सव

विशेष – विक्रमाब्द 1878 में आज के दिन नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी महाराज ने चार स्वरुप - श्रीमथुरेशजी (कोटा), श्रीविट्ठलनाथजी (नाथद्वारा), श्रीगोकुलनाथजी (गोकुल) एवं श्री नवनीतप्रियाजी को पधराकर दोहरा मनोरथ किया था अतः आज का दिन श्रीजी में चार स्वरुप के उत्सव के दिन के रूप में मनाया जाता है.

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

दो समय आरती थाली में की जाती है. सभी समय झारीजी मे यमुनाजल भरा जाता है.

श्रीजी को नियम के केसरी साज व केसरी रंग का पिछोड़ा धराया जाता है.

आज के श्रृंगार में विशेष यह है कि प्रभु को श्रीमस्तक पर केसरी श्याम झाईं वाले फेंटा के साथ श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

सामान्यतया फेंटा के संग कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची युक्त जलेबी) के लड्डू व दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीविट्ठलेश चरण चारू पंकज मकरंद लुब्ध गोकुलमें सकल संत करत है नित केली l

पावन चरणोदक जहा संतन हित सलिल बहत त्रिविध ताप दूर करत बदन इंदु मेली ll 1 ll

भूतल कृष्णावतार प्रगट ब्रह्म निराकार सिंचत हरि भक्ति सुधा धरणी धर्म वेली l

‘छीतस्वामी’ गिरिवरधर लीला सब फेर करत धेनु दुहत ग्वालन संग हाथ पाट सेली ll 2 ll

साज - आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, उत्सव के कमल के काम (Work) वाली एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग की मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. पिछोड़ा रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन मध्यम श्रृंगार धराया जाता है.

हीरा-मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. मोती की बद्दी के नीचे चंदन की मालाजी धरायी जाती है.

श्रीमस्तक पर केसरी श्याम झाईं वाले फेंटा का साज – फेंटा के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चंद्रिका, मोरपंख का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

कली आदि सब माला धरायी जाती हैं.

श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक मोती व एक सुवा वाला) धराये जाते हैं.


पट उष्णकाल का एवं गोटी बाघ बकरी का व आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

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